गाँव जा रहा गाँव
उमेशचन्द यादव बलिया (उत्तरप्रदेश) *************************************************** रेल की पटरी पर चलते नंगे पाँव, देखो आज शहर से गाँव जा रहा है गाँव पसीने में लथपथ धूल भरी रोटी, भूख बड़ी गठरी पड़ी छोटी चिलचिलाती धूप में चलते, चाह कर भी आराम ना करते खोजता फिरे इंसानियत की छाँव, देखो आज शहर से गाँव जा रहा है … Read more