सुसंस्कार ही दहेज
डॉ.चंद्रदत्त शर्मा ‘चंद्रकवि’ रोहतक (हरियाणा) ******************************************************* घनश्यामदास जी कभी शहर के प्रसिद्ध सेठ होते थे,पर समय के फेर ने सब कुछ ढेर कर दिया। उनका सारा व्यापार डूब चुका था। स्थिति यह हो गई कि,घर बेचकर अब किराए पर रहने लगे। उनके इकलौते पुत्र रमेशचंद्र की शादी हुई,घर में बहू जो आई,निश्चय ही लक्ष्मी आ … Read more