सुंदर पृथ्वी पर तुम हो विभीषिका

गोपाल चन्द्र मुखर्जी बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ************************************************************ जिस छोर पर तुम्हारा अंत होगा- वहीं से ही मेरी शुरूआत होगी, लग गया ध्वंस स्तूपों का ढेर तुम्हारा अब,बना है नया सृजन का क्षेत्र हमारा। मैं ही हूँ,मरुस्थल में जल बिंदु- दुर्भिक्ष में भूख का अन्न, हाहाकार में मैं हूँ सांत्वना- शांति के करुणा सिन्धु। मैं ही हूँ … Read more

मत भूलो अपनी संस्कृति

गोपाल मोहन मिश्र दरभंगा (बिहार) ******************************************************************************** कल रात सपने में आया ‘कोरोना’… उसे देख जो मैं डर गया, तो मुस्कुरा के बोला-‘मुझसे डरो ना।’ उसने कहा-‘कितनी अच्छी है तुम्हारी संस्कृति, न चूमते,न गले लगाते दोनों हाथ जोड़ कर हो स्वागत करते। मुझसे डरो ना… कहाँ से सीखा तुमने ? रूम स्प्रे,बॉडी स्प्रे, पहले तो तुम … Read more

तप्त वैसाख में सुख

गोपाल चन्द्र मुखर्जी बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ************************************************************ रुद्र तापस के प्रखर तेज से, निस्तब्ध,वैसाखी द्विप्रहर तप्त वायु के तेज प्रवाह से, पशु-पक्षी भी छिपे हैं आड़ में। राहगीर,चल रहा हूँ अकेला, छाता ही मात्र एक सहारा थका हुआ हूँ मैं,सोंचा चलूंगा फिर से, थोड़ा बैठकर पीपल की छाँव में। पीपल की शीतल हवा से, थकान कहाँ … Read more

अक्स

गोपाल मोहन मिश्र दरभंगा (बिहार) ******************************************************************************** बंद आँखों एक अँधेरे पर्दे पर, सायों को चला रहा है कौन दृश्य पर दृश्य बदलते हैं, अनदेखे,अनजाने,चेहरे बे-चेहरे तस्वीरें रोज अनोखी, बनाता है कौन। ज़ेहन की इन पगडंडियों पर, ये किसके नक़्शे कदम हैं मेरे हृदय की बंजर जमीं पर, ये किसकी कल्पना का अंकुर फूटा है नसों … Read more

मेरा ग्राम,मेरे प्राण

गोपाल चन्द्र मुखर्जी बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ************************************************************ स्वप्न में आए आज मेरा प्यारा ग्राम- जहाँ बीता था मेरा बचपन खुले मन प्राण, न जाने क्यों,कौन-से मोहजाल से भूले उसे- आ बस गया हूँ शहर में,शहरी बाबू बनने। चलो मन,एक बार चलें अतीत की झोली में- देखो,वह है बचपन का गाँव मेरे, देखो,दूर-दूर में बसे हैं घर … Read more

‘कोरोना’ चीन का जैविक विश्व युद्ध: कड़े सवाल

गोपाल मोहन मिश्र दरभंगा (बिहार) ******************************************************************************** जहाँ पूरी दुनिया ‘कोरोना’ से प्रभावित हो रही है,वहीं चीन में वुहान के अलावा यह क्यों कहीं नहीं फैला ? चीन की राजधानी आखिर इससे अछूती कैसे रह गयी ? प्रारंभिक अवस्था में चीन ने पूरी दुनिया से इस विषाणु के बारे में क्यों छुपाया ? कोरोना के प्रारंभिक … Read more

मृत्युदान

गोपाल मोहन मिश्र दरभंगा (बिहार) ******************************************************************************** जीवन किसने माँगा था, मगर जन्म पर किसका अधिकार है! करना पड़ता स्वीकार है, जैसा भी मिले। फिर भी इस बार मैं, मानता हूँ अपनी हार मैं। इस संसार में अब गुजर नहीं, यहाँ मेरा सुर,मेरा संगीत नहीं यहाँ मेरी प्रीत नहीं,मेरा गीत नहीं, टूट गया मेरा अभिमान। अब … Read more

हम विभ्रांत क्यों आज ?

गोपाल चन्द्र मुखर्जी बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ************************************************************ हम विभ्रांत क्यों आज! मृत्यु का कारण बन रहा हूँ,क्या है,उसका राज! जानता हूँ,कीटाणु घुले हुए हैं हवा में- विश्व कांप रहा है संक्रमण के डर से। फिर भी क्यों जाता हूँ मंदिर,मस्जिद,चर्च में- ख़ुद को संक्रमित कर दूसरों का ध्वंस करने। क्यों मैं भूल जाता हूँ- सर्वधर्म क्या … Read more

प्रकृति-एक सोच

गोपाल मोहन मिश्र दरभंगा (बिहार) ******************************************************************************** प्रकृति और मानव स्पर्धा विशेष…….. प्रकृति धरा पर कुछ भी अपने लिए नहीं करती, नदियाँ पहाड़ों से अपने लिए नहीं उतरती। चाँद सूरज भी कहाँ अपने लिए चमकते हैं ? प्यार भरे दिल भी दूसरों के लिए धड़कते हैं। फूल-वृक्ष की डाली अपने लिए नहीं फलती, प्रकृति धरा पर … Read more

व्यथित प्रकृति

गोपाल चन्द्र मुखर्जी बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ************************************************************ प्रकृति और मानव स्पर्धा विशेष…….. मैं प्रकृति,माता भी हूँ तुम्हारी, स्नेह,ममता के विगलित धारा से- सम्पदाओं से पूर्ण यह सुंदर विश्व, उपहार दिया है तुझे,प्यार से। दर्शन मेरा तुम पाओगे सिर्फ, अनुभूति की माया से स्पर्श मेरे हल्के छूने से, आमेज़ भरी भावना में। शीत ग्रीष्म से होकर कातर, … Read more