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सुंदर पृथ्वी पर तुम हो विभीषिका

गोपाल चन्द्र मुखर्जी
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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जिस छोर पर तुम्हारा अंत होगा-
वहीं से ही मेरी शुरूआत होगी,
लग गया ध्वंस स्तूपों का ढेर तुम्हारा
अब,बना है नया सृजन का क्षेत्र हमारा।

मैं ही हूँ,मरुस्थल में जल बिंदु-
दुर्भिक्ष में भूख का अन्न,
हाहाकार में मैं हूँ सांत्वना-
शांति के करुणा सिन्धु।

मैं ही हूँ आदि,मैं ही हूँ अनन्त-
महातप में सदा निमग्न,
रिक्त होकर भी मैं,फिर भी राजर्षि
उतश्रृंखला से छाए जग का दण्डाधिकारी।

मनुष्य,तुम मेरी श्रेष्ठ सृष्टि,सभ्य-
शिक्षा प्राप्त उन्नत हो ज्ञान-विज्ञान से,
लेकिन,निर्दयी हो,नृशंस तुम
हत्यारे हो,विज्ञान की आड़ में।

सुंदर पृथ्वी पर तुम हो विभीषिका-
प्रकृति के सारे नियमों को तोड़कर,
मुक्त वायु में जहर घोलकर
विश्व को लाश के स्तूपों में बदला।

क्या भयंकर है तुम्हारी मानसिकता-
निरीह जीवों का भोजन बनवाया,
कहां है अहिंसा नीति तुम्हारी-
दूसरों के कष्ट को स्वयं पर अपनाना।

झूठे धर्मचारियों,ध्वंस हो तुम्हारे-
तुम जैसे सभ्यों को निश्चिन्ह कर,
शांति व प्रेम की लहर लहराकर
तुम्हारे ध्वंसावशेष पर नया सृजन करेंगे।

जहाँ नहीं होगा प्राणी हत्या का विज्ञान-
जहाँ प्राणी भूखे नहीं मरेंगे।
जहाँ नहीं होगी वियोग की क्रन्दन ध्वनि,
जहाँ सनातन धर्म लांछित नहीं होंगे॥

परिचय-गोपाल चन्द्र मुखर्जी का बसेरा जिला -बिलासपुर (छत्तीसगढ़)में है। आपका जन्म २ जून १९५४ को कोलकाता में हुआ है। स्थाई रुप से छत्तीसगढ़ में ही निवासरत श्री मुखर्जी को बंगला,हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। पूर्णतः शिक्षित गोपाल जी का कार्यक्षेत्र-नागरिकों के हित में विभिन्न मुद्दों पर समाजसेवा है,जबकि सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत सामाजिक उन्नयन में सक्रियता हैं। लेखन विधा आलेख व कविता है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में साहित्य के क्षेत्र में ‘साहित्य श्री’ सम्मान,सेरा (श्रेष्ठ) साहित्यिक सम्मान,जातीय कवि परिषद(ढाका) से २ बार सेरा सम्मान प्राप्त हुआ है। इसके अलावा देश-विदेश की विभिन्न संस्थाओं से प्रशस्ति-पत्र एवं सम्मान और छग शासन से २०१६ में गणतंत्र दिवस पर उत्कृष्ट समाज सेवा मूलक कार्यों के लिए प्रशस्ति-पत्र एवं सम्मान मिला है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज और भविष्य की पीढ़ी को देश की उन विभूतियों से अवगत कराना है,जिन्होंने देश या समाज के लिए कीर्ति प्राप्त की है। मुंशी प्रेमचंद को पसंदीदा हिन्दी लेखक और उत्साह को ही प्रेरणापुंज मानने वाले श्री मुखर्जी के देश व हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिंदी भाषा एक बेहद सहजबोध,सरल एवं सर्वजन प्रिय भाषा है। अंग्रेज शासन के पूर्व से ही बंगाल में भी हिंदी भाषा का आदर है। सम्पूर्ण देश में अधिक बोलने एवं समझने वाली भाषा हिंदी है, जिसे सम्मान और अधिक प्रचारित करना सबकी जिम्मेवारी है।” आपका जीवन लक्ष्य-सामाजिक उन्नयन है।

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