मकर संक्रान्ति,बिहू और पोंगल पर्व

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’ बेंगलुरु (कर्नाटक) **************************************************************************** पौष मास स्वागत करूँ,सूर्य करे धनु त्याग। मकर राशि पावन अतिथि,महापर्व अनुराग॥ प्रथम साल त्यौहार है,मकर संक्रान्ति नाज़। सदा चतुर्दश जनवरी,कभी पञ्चदश आज॥ लोहड़ी या बिहू कहीं,है पोंगल त्यौहार। कहीं तिल संक्रान्ति यह,दधि-चूड़ा आहार॥ शस्य श्यामला खेत का,नया फसल का स्वाद। चहुँदिश है फ़ैली खुशी,मिटा वैर अवसाद॥ रंग-बिरंगी … Read more

नहीं घुसपैठियों को माफ करना

कैलाश झा ‘किंकर’ खगड़िया (बिहार) ************************************************************************************ बिखरकर फूल बागों के झड़ेंगे, अकारण लोग आपस में लड़ेंगे। अगर कुछ सख़्त हो कानून मित्रों- करेंगे जो उपद्रव वो सड़ेंगे। न भारत बन्द ऐसा हो कहीं पर, करे मत चोट कोई भी यकीं पर। सभी हैं देशवासी हिन्द के तो- बहे मत खून भारत की जमीं पर। लड़ाती … Read more

देश से बढ़कर कुछ नहीं

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’ बेंगलुरु (कर्नाटक) **************************************************************************** राजनीति प्रतिकूलता,देशविमुख फरमान। चाहे जितना यतन कर,सफल न हो अरमान॥ देश से बढ़ कर कुछ नहीं,समझो रे गद्दार। छोड़ो दंगा गुंडई,बनो वतन खु़द्दार॥ लोकतंत्र मतलब नहीं,तोड़ोगे तुम देश। गाओगे नापाक को,नहीं बचोगे शेष॥ कोसो तुम सरकार को,ये तेरा अधिकार। पर तोड़ो मत देश को,वरना हो धिक्कार॥ आज़ादी अभिव्यक्ति … Read more

रहे चतुर्दिक् चौकसी

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’ बेंगलुरु (कर्नाटक) **************************************************************************** करते सब दकियानुसी,छिपा मनसि है चोर। छल कपटी नेता प्रजा,दे फ़साद झकझोर॥ जले शान्ति धन सम्पदा,उजड़े वतन सुजान। देशद्रोह ज्वालामुखी,महाज्वाल शैतान॥ लोभी लुच्चा देश में,फैलाता अफवाह। खाने के लाले पड़े,बन फ़साद गुमराह॥ निर्भय वे कानून से,मरने को तैयार। फँस सिक्कों के जाल में,नाबालिग मँझधार॥ खाक राष्ट्र की अस्मिता,प्रगति … Read more

नव वर्ष के आते-आते

रेणु झा ‘रेणुका’ राँची(झारखंड) ******************************************************************* नव वर्ष के आते-आते, एक प्रकाश पुंज आया भारत की ओर, देख कर मन हुआ विभोर। हर दिशा की खुशबू ने कहा- देश बदल रहा है। `राम जन्मभूमि` मुक्त हुआ, `कश्मीर` पुनः अपना बना `तीन तलाक़` खत्म हुआ, दुनिया में `भारत का मान` बढ़ा `स्वच्छता` अभियान चला, अंग्रेजी को पीछे … Read more

सूली चढ़े दूत बन प्यार-अमन के

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’ बेंगलुरु (कर्नाटक) **************************************************************************** ‘बड़े दिन की छुट्टी’ स्पर्धा  विशेष……… बड़े दिन की छुट्टियाँ, साल का अवसान है नववर्ष का शुभ आगमन है, ठण्ड का पुरजोर आगम बाँछें खिली गर्म कपड़ों कीl किलकारियाँ दे रहे मफलर,दास्ताने, समाने को समुद्यत पैरों में गर्म मौजे बेधड़क, रजाईयाँ कम्बल सरीखे गर्म गद्दे सभी उल्लसित प्रमुदित … Read more

लानत है नेतागिरी

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’ बेंगलुरु (कर्नाटक) **************************************************************************** आहत है मेरी कलम,गद्दारों को देख। खंडन को नेता तुले,देश दुखी क्या लेखll आज बहुत तारक वतन,हैं कहँ तारकनाथ। तोड़ रहे अपने वतन,कहाँ विश्व का साथll निगरानी निज देश का,राष्ट्रसंघ आह्वान। लानत है नेतागिरी,किया राष्ट्र अपमानll हंगामा बरपा वतन,रिफ्यूजी उपवेश। वोटबैंक के आड़ में,लूट रहा है देशll गतिविधियाँँ … Read more

देश तोड़ने पर तुले

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’ बेंगलुरु (कर्नाटक) **************************************************************************** घृणा द्वेष अफवाह फिर,गर्माया बाज़ार। अमन चैन आवाम फिर,लड़ने को तैयारll संविधान के नाम पर,वोटतंत्र का खेल। गलबहियाँ फिर स्वार्थ की,शुरु हुआ गठमेलll सब कुछ पाया देश में,पर होता भयभीत। गज़ब खेल है वोट का,जैसे भी हो जीतll है सामाजिक अवदशा,देशद्रोह उन्माद। भड़काते नफ़रत फ़िजां,नेता रोग विषादll समां … Read more

समरथ को सब कुछ क्षमा

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’ बेंगलुरु (कर्नाटक) **************************************************************************** पाप-पुण्य के व्यूह में,क्यों फँसते हैं आप। बनो सुजन सत् सारथी,बिन परार्थ है पापll जिसको लगता जो भला,उसे समझता पुण्य। आहत लखि निज स्वार्थ को,पुण्य विरत जग शून्यll समरथ को सब कुछ क्षमा,दीन कृत्य अपराध। शील त्याग गुणहीन भी,व्यभिचारी निर्बाधll पद वैभव की तुला पर,पाप-पुण्य परिभास। दीन दुखी … Read more

दुष्कर्म

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’ बेंगलुरु (कर्नाटक) **************************************************************************** मानवीय संवेदना,मर्यादित आचार। क्या जाने कामी दनुज,घूमे कर व्यभिचारll निर्विवेक पशुतुल्य वे,कर कातिल शिकार। क्या बेटी माँ बहन हो,निर्दय कुटिल प्रहारll होता जग लज्जित वतन,उत्पीड़न नित देख। देवतुल्य नारी जहाँ,उपहासित उल्लेखll `ज़ल्लाद` कहो,`हैवान` या,`दानव`,`दुष्ट`, नृशंस। कहँ ख़ोजे इन्सानियत,दुष्कर्मी जो कंसll शैतानों का दिल कहाँ,दर्दिल हो मासूम। घाव दिया … Read more