आलोचना की प्रासंगिकता

अवधेश कुमार ‘अवध’ मेघालय ******************************************************************** आलोचना,समीक्षा या समालोचना का एक ही आशय है,समुचित तरीके से देखना जिसके लिए अंग्रेजी में ‘क्रिटिसिज़्म’ शब्द का प्रयोग होता है। साहित्य में इसकी शुरुआत रीतिकाल में हो गई थी,किन्तु सही मायने में भारतेन्दु काल में यह विकसित हुई। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का इसमें महती योगदान है जिसको रामचन्द्र … Read more

भूख-प्यास की क्लॉस…

तारकेश कुमार ओझा खड़गपुर(प. बंगाल ) ********************************************************** क्या होता है जब हीन भावना से ग्रस्त और प्रतिकूल परिस्थितियों से पस्त कोई दीन-हीन ऐसा किशोर महाविद्यालय परिसर में दाखिल हो जाता है,जिसने मेधावी होते हुए भी इस बात की उम्मीद छोड़ दी थी कि अपनी शिक्षा -दीक्षा को वह कभी महाविद्यालय के स्तर तक पहुंचा पाएगा। … Read more

वर्षा रानी चारुतम

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’ बेंगलुरु (कर्नाटक) **************************************************************************** वर्षा रानी चारुतम,सज सोलह श्रृंगार। पीर गमन व्याकुल हृदय,मेघ नैन जलधार॥ विद्युत नभ क्रन्दन करे,सुता विदाई शोक। नील गगन दुहिता विरह,अश्क नैन बिन रोक॥ चमक व्योम नित बिजुरिया,वाद्य यंत्र शुभगान। स्वागतार्थ भू है खड़ी,वृष्टि वधू सम्मान॥ मातु-पिता प्रिय गेह को,तज वर्षा मन घोर। मन मयूर होता मुदित,मिलन प्रीत … Read more

प्यार

विरेन्द्र कुमार साहू गरियाबंद (छत्तीसगढ़) ****************************************************** बक-बक करते रात-दिन,वह है मूढ़ महान। प्यार शब्द जो बाँच ले,वही खरा विद्वान॥ ढाई अक्षर से बना,शब्द अनोखा प्यार। मन का मन से जोड़ का,एक यही आधार॥ कभी किसी के सामने,नहीं झुकेगा शीश। प्यार करो माँ-बाप से,मिल जाएगा ईश॥ दिखते हैं संसार में,भाँत-भाँति के प्यार। कुछ का निश्छल प्रीत … Read more

बचपन की यादें

विजय कुमार मणिकपुर(बिहार) ****************************************************************** एक साथ खेले हैं हमने पलकों में उन्हें छुपाए, सारी-सारी रात जागकर दिल की बात बताएं। हाँ बचपन ऐसे बीत गया शबनम हमसे रूठ गई, कसमें-वादे टूट गए सपने सारे लूट गए। चले गए वो छोड़ के हमसे नाता तोड़ के, यहीं बातें बोल के फिर मिलेंगे सब छोड़ के। उन्हीं … Read more

हिन्दी की अस्मिता पर प्रहार करने वाले हिन्दी के अपने

प्रो. कृष्ण कुमार गोस्वामी दिल्ली *************************************************************************** यह बहुत बड़ी विडंबना है कि हिन्दी को तोड़ने वालों में हिन्दी के अपने ही लोग हैं।भोजपुरी के कुछ समर्थकों का यह विचार है कि हिन्दी भाषा से अलग होने पर ही भोजपुरी भाषा और संस्कृति का विकास हो पाएगा। वास्तव में यह उनका भ्रम है। भाषा विज्ञान की … Read more

दुश्मन हम ख़ुद प्रकृति के

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’ बेंगलुरु (कर्नाटक) **************************************************************************** जल प्लावन आधी धरा,शेष शुष्क बदरंग। महाकाल धन जन जमीं,जलज बिखेरे जंग॥ जान माल बेघर प्रजा,बाढ़ त्रस्त निर्दोष। रोग शोक प्रसरित धरा,त्राहि-त्राहि उदघोष॥ दुश्मन हम ख़ुद प्रकृति के,कर्तन तरु पाषान। निजहित में हम भर सरित,आपद खुद हम जान॥ धन कुबेर तो महल में,आपद में बस आम। फेंक रोटियाँ … Read more

तालीम और सरकार

सोनू कुमार मिश्रा दरभंगा (बिहार) ************************************************************************* हसरतें तालीम की कभी आसान नहीं होती, तालीम बिन मनुज की कोई पहचान नहीं होती। तालीम बिन तकदीर की तस्वीर नहीं बदलती, तालीम हो तो मनुज की कभी पहचान नहीं मिटती। फिर क्यों तालीम को जालिम,जाहिल बनाने चले हैं… गरीबों से तालीम छीनने को फिर से वे अड़े हैं॥ … Read more

हमें चाहिए भाईचारा

अवधेश कुमार ‘अवध’ मेघालय ******************************************************************** दान दहेज कुप्रथा तजकर,ही बच्चों की शादी हो। हम दो और हमारे दो हों,छोटी-सी आबादी हो। राह कठिन हो और हौंसला पत्थर-सा फौलादी हो- हमें चाहिए भाईचारा,खाकी हो या खादी हो॥ परिचय-अवधेश कुमार विक्रम शाह का साहित्यिक नाम ‘अवध’ है। आपका स्थाई पता मैढ़ी,चन्दौली(उत्तर प्रदेश) है, परंतु कार्यक्षेत्र की वजह से गुवाहाटी … Read more

माँ…एक रोटी

विजय कुमार मणिकपुर(बिहार) ****************************************************************** एक रोटी मुझे तू दे दे माँ, मेरे पेट की भूख मिटा दे… कितने दिनों से भूखी हूँ, फिर भी कभी न रोती हूँ। अब सहा नहीं जाता है माता, कैसे तुम्हें बताऊँ ? चन्द घण्टों की बात नहीं, कब तक तुमसे छुपाऊं। बेटी थोड़ा कर ले इंतजार, रोटी वाले भैया … Read more