निखर कर वो उभर आती है

रोहित मिश्र,प्रयागराज(उत्तरप्रदेश)*********************************** उतारो जिस क्षेत्र में उसको,निखर कर वो उभर आती है।तप कर वो सोना-चाँदी,ममता की मूरत कहलाती है। समझो मत उसको अबला की मूरत,शक्ति का रूप दिखलाती है।हर बच्चे की पहली शिक्षाउसके बिन,अधूरी समझी जाती है। नारी बिन है नर अधूरे,शक्ति बिन है,शिव अधूरे।फिर भी मानव की आँखें घूरे,अभी भी संभल जा,ओ जमूरे। हर … Read more

लाली छाई

रोहित मिश्र,प्रयागराज(उत्तरप्रदेश)*********************************** आज गगन में प्यारी लाली छाई,सूरज ने मंद-मंद किरणें,फैलाई। धूप ने,भी ली बड़ी अंगड़ाई,बागों में है कलियाँ खिल आई। कोयल की मधुर आवाजें आई,चिड़ियों की चहचहाहट सुनाई। चारों तरफ बागों में हरियाली छाई,उपवन में ताजे फूलों की खूशबू आई। प्रकृति की भी चुनरिया,लहराई,आज गगन में प्यारी लाली छाई॥

माँ बिन…मायका

डॉ. आशा मिश्रा ‘आस’मुंबई (महाराष्ट्र)******************************************* मायका…नहीं रह जाता मायका,माँ के बिना…सूना सब ज़ायक़ाघर तो बिलकुल वही रहता है,फिर क्यों सब नया-सा लगता है ?? अजनबी से चेहरे लगते सभी,प्यार भी लगने लगता दिखावाभाई-भाभी से रिश्ता पहले सा तो है,फिर क्यों उनका व्यवहार बदला सा है ?? अब वो पहले सी आवभगत नहीं,क्या पसंद है…क्या खाएगी … Read more

संविधान बिना देश की एकता-अखण्डता की कल्पना बेमानी

रोहित मिश्र,प्रयागराज(उत्तरप्रदेश)********************************************** किसी भी देश का संविधान उसकी रीढ़ के समान होता है। हर देश का एक संविधान होता है,जिसके अनुसार उस देश की व्यवस्था चलती है। सार्वजनिक नियम कानून को ही संविधान की संज्ञा दी जाती है। संविधान वैसे तो सभी देशों में होता है, परन्तु लोकतांत्रिक देशों में संविधान देश के लिए आक्सीजन … Read more

पिया संग होली

मधु मिश्रानुआपाड़ा(ओडिशा)******************************** लाल गुलाबी रंग लिए,लो आ गया मधुमास…मोहक रंग बिखेर रहा,प्यारा फूल पलाश…। बसंत की आहट हुई तो,वसुधा ने किया श्रृंगार…आम्र मंजरी से उसका,आया है गजब निखार…। फागुन का रंगों संग देखो,कितना है अद्भुत मेल…प्रियतम संग खेलूँगी मैं भी,रँग भरा ये खेल…। ढोल मंजीरों में भी अब तो,रंग गई देखो फाग…होली के सतरंगों जैसा,प्रियतम … Read more

होली की अब उठ गई है डोली!

गोपाल मोहन मिश्रदरभंगा (बिहार)***************************************** फागुन संग-जीवन रंग (होली) स्पर्धा विशेष… नहीं बिखरते हैं अब रंग होली केदिखती नहीं मस्तानों की टोली,फागुन भी बदला इस कलयुग मेंदिलों में नहीं प्यार की बोली,होली की अब उठ गई है डोली! आमों से रूठा है मंजर-बौरसेमल के फूलों का…दिखे न अब यहाँ कोई ठौर,फागुन का रास्ता ताकते-ताकतेखिलती सरसों भी … Read more

फागुन लाया प्यार की सौगात

शिवेन्द्र मिश्र ‘शिव’लखीमपुर खीरी(उप्र)***************************************** फागुन संग-जीवन रंग (होली) स्पर्धा विशेष… आधुनिकता में मस्त हैं,सब नर-नारी संत।अन्तर्मन पतझड़ हुआ,दिखला रहे बसंत॥ देखो कैसी हो गयी,लोकतंत्र की रीति।सिर्फ चुनावी रंग में,करते ‘शिव’ से प्रीति॥ आया मौसम फाग का,मन में उठी उमंग।भूल पुरानी रंजिशे, ‘शिव’ मिल खेले रंग॥ फागुन आया झूमकर,जिसकी धूम अनंत,देखो ‘शिव’ भी मचलते,जिन्हें कहें सब … Read more

रंग भेद-भाव नहीं करते

मधु मिश्रानुआपाड़ा(ओडिशा)******************************** फागुन संग-जीवन रंग (होली) स्पर्धा विशेष… नौकर बुधिया को है भाता,होली का त्यौहार…ऊँच-नीच की इसमें कोई,होती नहीं दीवार…। कम से कम पैसों में बिकता,रंग और गुलाल…नीला-पीला जैसा ले लो,हरा-बैंगनी-लाल…। होली के रंगों में होता,गज़ब अनोखा प्रेम…सबके चेहरे एक सरीखे,क्या नौकर! क्या मेम…। राजा और प्रजा दोनों ही,झूम रहे हैं आज…इसीलिए तो फागुन होता,महीनों … Read more

होली

डॉ. आशा मिश्रा ‘आस’मुंबई (महाराष्ट्र)******************************************* फागुन संग-जीवन रंग (होली) स्पर्धा विशेष… कैसी होली…कैसा रंग…कैसा गुलाल…सरहद पर रंग गया…अपने ही लहू से किसी का लाल। ज़मीन-आसमान को…रंगों से रंगने की,नाकाम कोशिश में लगे लोग……कहीं लाल,कहीं हरा,कहीं नीला,कहीं गुलाबी और,कई जगह काला रंग भरने लगे लोग…।सड़कों पर,गलियों में…बेमक़सद,बेवजह,लाल रंग…बहाते हुए बेहया,बेशरम लोग…जानकर भी,अपनी पहचान छुपा रहे थे … Read more

रंगरेज

डॉ. वंदना मिश्र ‘मोहिनी’इन्दौर(मध्यप्रदेश)************************************ फागुन संग-जीवन रंग (होली) स्पर्धा विशेष… ‘समय’ अपनी गति में,तेजी से आगे बढ़ रहा था, और साथ मे मेरी ट्रैन भी। ‘गुड़िया’ को अपने सीने से लगाए मैं चुपचाप चली जा रही थी! एक ऐसी यात्रा पर,जिसकी कोई मंजिल नहीं थी।आज होलिका दहन है,रास्ते में कई छोटे-छोटे गाँव पड़े,जहां पर रात्रि … Read more