क्या तेरा क्या मेरा है

राजेश पड़िहारप्रतापगढ़(राजस्थान)*********************************************************** जो पाप किये सर मेरे धरता,धर्म कर्म सब तेरा है।ये जीवन है दो दिन का,क्या तेरा क्या मेरा है। मैंने जब ये जीवन पाया,जोड़ जगत ने काट दिया,बाल रूप में ईश मानकर,हाथों विष क्यों छांट दिया।पल-पल जग में ढली शाम तो,होता गया सवेरा है,ये जीवन है…ll केवल रूदन हँसी थी मन में,कोई न … Read more

मैं हवस का कौर क्यों..

राजेश पड़िहार प्रतापगढ़(राजस्थान) *********************************************************** हैदराबाद घटना-विशेष रचना………… क्या कहो अपराध मेरा,मैं हवस का कौर क्यों, चीखती सित्कारती मैं,सुन न पाते शोर क्यों ? जब मरी नवयौवना,उदगार उसने यह कहे, मानते देवी अगर तुम,फिर न बदला दौर क्यों। ले मशालें चल पड़े हैं,लोग सड़कों पर खड़े, मांगते इंसाफ लेकिन,हो रहा फिर और क्यों। पाप करते भी … Read more

कायदा तो है नहीं

राजेश पड़िहार प्रतापगढ़(राजस्थान) *********************************************************** बढ़ रहे हैं भाव लेकिन फायदा तो है नहीं। भेड़ की हम चाल चलते कायदा तो है नहीं। बस गिरे औ उठ रहे हैं आज शेयर देख लो, अब रहा बाज़ार में वह वायदा तो है नहीं। लेप कर सौन्दर्य साधन सज रही हैं यौवना, मान को जो मान देती वह … Read more

बेटी

राजेश पड़िहार प्रतापगढ़(राजस्थान) *********************************************************** भारी उसका पेट था,सास चाहती लाल। लेकिन किस्मत चल गयी,देख अनोखी चाल। देख अनोखी चाल,जनी है उसने बेटी। खोल रही है सास,रोज तानों की पेटी। साफ चमकती आज,सास की है लाचारी। चली सदन ‘राजेश’,बहू के पद थे भारी। मिलती रही प्रताड़ना,गरल उतारे नार। गुड़िया के डग ले रहे,रोज नये आकार। रोज … Read more

जीवन के उस पार

राजेश पड़िहार प्रतापगढ़(राजस्थान) *********************************************************** सिर्फ नैनों में थे सपने, धरातल पर होते नहीं, जो कभी साकार। अब, अपने कद से भी ऊंचा, हो गया है उनका आकार। ये उन दिनों की बात है, जब हाथों में होता था गुल्ली-डंडा। छोटी-सी डपट पर, गरम होता खून पापा के पदचाप की आहट सुन, हो जाता था ठंडा। … Read more

उनकी कमी खली जाए

राजेश पड़िहार प्रतापगढ़(राजस्थान) *********************************************************** साँस जितनी बची चली जाए। जिंदगी फिर नहीं छली जाए। स्वार्थ वाली पकी तवा रोटी, साग अब फिर कहीं जली जाए। मुस्कुराते रहे हज़ारों में, आज उनकी कमी खली जाए। गम हटा कर कभी चला करना, राह फिर मौज से ढली जाए। हार दर पर तेरे चढ़ाया जो, नोंचती तो नहीं … Read more

बिन लड़े कौन जीत पाता है भला

राजेश पड़िहार प्रतापगढ़(राजस्थान) *********************************************************** (रचना शिल्प:बहर-२१२२ २१२२ २१२२ २१२) झाड़ आँगन आज कोई अब लगाता है भला। बिन लड़े ही कौन जग में जीत पाता है भला। बस यूँ ही तकदीर को कब तक रहोगे कोसते, देख ठोकर कौन फिर से चोट खाता है भला। राह की बाधा अनेक सर उठाये जो अगर, मुश्किलों से … Read more

मत जाओ माँ

राजेश पड़िहार प्रतापगढ़(राजस्थान) *********************************************************** मातृ दिवस स्पर्धा विशेष………… सुनाकर बोल, दिखायेगा कौन आँखें। सागर-सी, गहरी होती है तुम्हारी मौन आँखें। माँ, मैं एक आवाज से आ जाऊंगा दौड़कर। मत जाओ, माँ मुझे छोड़कर। हर बात, तुुम्हारी कभी नहीं मैं टालूँगा। माँ, मैं गलती को छोटे पर भी, नहीं डालूंगा। कुछ कहो माँ, सोई क्यों मुँह … Read more