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बिन लड़े कौन जीत पाता है भला

राजेश पड़िहार
प्रतापगढ़(राजस्थान)
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(रचना शिल्प:बहर-२१२२ २१२२ २१२२ २१२)

झाड़ आँगन आज कोई अब लगाता है भला।
बिन लड़े ही कौन जग में जीत पाता है भला।

बस यूँ ही तकदीर को कब तक रहोगे कोसते,
देख ठोकर कौन फिर से चोट खाता है भला।

राह की बाधा अनेक सर उठाये जो अगर,
मुश्किलों से लड़-झगड़ कर लौट आता है भला।

जो नहीं पहचान पाए गान में सुर-ताल को,
वह भरी महफ़िल में कैसे गीत गाता है भला।

हौंसले में जान हो ‘राजेश’ तो फिर मान लो,
हार का उसको नहीं फिर भय सताता है भला॥

परिचय-राजेश कुमार पड़िहार की जन्म तारीख १२ मार्च १९८४ और जन्म स्थान-कुलथाना है। इनका बसेरा कुलथाना(जिला प्रतापगढ़), राजस्थान में है। कुलथाना वासी श्री पड़िहार ने स्नातक (कला वर्ग) की शिक्षा हासिल की है। कार्यक्षेत्र में स्वयं का व्यवसाय (केश कर्तनालय)है। लेखन विधा-छंद और ग़ज़ल है। एक काव्य संग्रह में रचना प्रकाशित हुई है। उपलब्धि के तौर पर स्वच्छ भारत अभियान में उल्लेखनीय योगदान हेतु जिला स्तर पर जिलाधीश द्वारा तीन बार पुरस्कृत किए जा चुके हैं। आपको शब्द साधना काव्य अलंकरण मिला है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी के प्रति प्रेम है।

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