रो रहा है आसमां

पंकज भूषण पाठक ‘प्रियम’ बसखारो(झारखंड) *************************************************************************** रो रही धरती अभी,रो रहा है आसमां, जल रहा सारा जगत,बुझती हर इक शमा। मौत का मंज़र यहाँ,ख़ौफ़ में सारा जहाँ, साँस सबकी थम रही,बढ़ रही धड़कन यहाँ। कैद घर में आदमी,मिल रही कैसी सजा ? बोल ईश्वर कह खुदा,क्या अभी तेरी रजा ? रोज़ बढ़ता आँकड़ा,मर रहा हर … Read more

माँ दुर्गे नजर आने लगी

अर्चना पाठक निरंतर अम्बिकापुर(छत्तीसगढ़) ***************************************************************************** माता रानी के चरणों में गिरती गई, इन हवाओं से कैसे मैं घिरती गई। ये कदम उठते हैं तेरे द्वारे पे माँ, तेरी गलियाँ मुझे सिर्फ भाने लगी। जब न देखूँ तुझे दिल होता बेचैन, तेरे मंदिर पर मैं रोज आने लगी। क्षीण होता बदन लड़खड़ाते कदम, तेरी रहमत से ही … Read more

भारतीयता अपनाएं, ‘कोरोना’ भगाएं

पंकज भूषण पाठक ‘प्रियम’ बसखारो(झारखंड) *************************************************************************** ‘कोरोना’ से बचाव के लिए पूरी दुनिया आज ताली बजाकर जागरण कर रही है।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी २२ मार्च को ताली बजाकर सन्देश देने का आह्वान किया है। बीबीसी की एक रिपोर्ट पर कई लोग कह रहे हैं कि,श्री मोदी का यह विचार(तरकीब)पश्चिमी देशों की नकल है। शायद … Read more

नहीं यह देश है उसका

पंकज भूषण पाठक ‘प्रियम’ बसखारो(झारखंड) *************************************************************************** आंदोलन के नाम पे क्या,तुम सारा देश जला दोगे ? घुसपैठियों की ख़ातिर क्या,घर की नींव हिला दोगे ? शासन से मतभेद अगर है,आसन से तुम बात करो- अफ़वाहों के भीड़ तंत्र में,क्या लोकतंत्र झुठला दोगे ? गुंडागर्दी भेड़चाल में क्या,सब-कुछ आग लगा दोगे ? गंगा जमुनी तहज़ीब भुला,खुद … Read more

मन बंजारा…

पंकज भूषण पाठक ‘प्रियम’ बसखारो(झारखंड) *************************************************************************** मन बंजारा तन बंजारा,ये जीवन बंजारा है, चार दिनों की ज़िन्दगी,बस इतना गुजारा है। ये मन भी कहाँ इक पल,चैन से सोता है, ख़्वाब सजाए आँखों में,चैन ये खोता है। चाहत के जुनूँ में मन,बस फिरता मारा है, मन बंजारा तन बंजारा,जीवन बंजारा है॥ ये तन भी कहाँ हरदम,साथ … Read more

निःशब्द हूँ `दिशा`

पंकज भूषण पाठक ‘प्रियम’ बसखारो(झारखंड) *************************************************************************** निःशब्द हूँ `दिशा` क्या कहूँ ? यह भारत है जहाँ आतंकवादियों को भी, बचाने को वकील खड़ा हो जाता है फिर तो तुम्हारे गुनहगार महज दुष्कर्मी हैं! उन दुष्टों के लिए वकीलों की क्या कमी होगी ? कोर्ट में बार-बार तुम्हारे नाम पर झूठी जिरह करेंगे, हर बार अपनी … Read more

शहर

पंकज भूषण पाठक ‘प्रियम’ बसखारो(झारखंड) *************************************************************************** घने कोहरे में लिपटा, धुँआ-धुँआ सा है शहर। फिजां में धीरे घुलता, मीठा-मीठा-सा है जहर। किसी गरीब की फटी, झोली-सा है शहर। उसके शरीर पर लिपटी, मैली कमीज सा है शहर। शर्म बस थोड़ा ढँकती, उघड़ी समीज़-सा है शहर। पेट-पीठ से सटी, भूखी अंतड़ी-सा है शहर, होंठ पर पड़ी … Read more

संहार करेगी

पंकज भूषण पाठक ‘प्रियम’ बसखारो(झारखंड) *************************************************************************** हैदराबाद घटना-विशेष रचना………….. कुचल डालो सर उसका,जिसने भी दुष्कर्म किया, मसल डालो धड़ उसका,जिसने भी यह कर्म किया। नहीं क्षमा ना दो संरक्षण,ना मज़हब का दो आरक्षण, हर दुष्कर्मी को दो फाँसी,जो करते जिस्मों का भक्षण। काट डालो उन पँजों को,जिसने अस्मत को तार किया, मानव तन में छुपे … Read more

मुहब्बत

पंकज भूषण पाठक ‘प्रियम’ बसखारो(झारखंड) *************************************************************************** (रचनाशिल्प:१२२ १२२ १२२ १२२)  मुहब्बत मुहब्बत मुहब्बत हमारी, सलामत रहे प्यार चाहत हमारी। नहीं ख़्वाब कोई नहीं चाह कोई, नहीं कोई तुझसे शिकायत हमारी। नहीं फूल गुलशन,नहीं चाँद-तारे, नहीं झूठ कहने की आदत हमारी। लिखेगा जमाना फ़साना हमारा, बनेगी कहानी ये उल्फ़त हमारी। प्रियम की मुहब्बत तुम्हारी जवानी, दिलों … Read more

सिंदूर

पंकज भूषण पाठक ‘प्रियम’ बसखारो(झारखंड) *************************************************************************** चुटकी भर सिंदूर लगा, सजनी सुंदर सजती है। सोलह श्रंगार होता पूरा, माथे जो लाली रचती है। बिन इसके सुहाग अधूरा, हर नारी अधूरी लगती है। चटक सिन्दूरी सूरज आभा, सजा के औरत फबती है। चुटकी भर सिंदूर की कीमत, सुहागन सारी समझती है। तभी सुहाग बचाने को नारी, … Read more