जाड़े की धूप
गीतांजली वार्ष्णेय ‘ गीतू’ बरेली(उत्तर प्रदेश) ************************************************************************* कितनी प्यारी लगती है जाड़े की ये धूप, थर-थर काँपें,सूरज दादा जब जाते छुप। सुबह कुहरा आया था,घुप्प अंधेरा छाया था, बहुत दिनों में आज खिला है,अम्बर का ये रूप। कितनी प्यारी लगती है,जाड़े की ये धूप॥ लुका-छिपी खेल रहे,बादलों बीच डोल रहे, सूरज दादा फैला रहे,जग में … Read more