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हमारे लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ राष्ट्रीय समस्या

कर्नल डॉ. गिरिजेश सक्सेना ‘गिरीश’
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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भारत एक सार्वभौम संवैधानिक लोकतंत्र है और भारतीय लोकतंत्र के तीन संवैधानिक स्तम्भ हैं,यथा-विधायिका,कार्यपालिका एवं न्याय पालिका,जिनके संगठन,कार्य,कार्यपद्धति संविधान में निहित है|

`विधायिका` सर्वविदित है जन निर्वाचित सुनियोजित व्यक्ति समूह है,जो जनसेवा भावना से प्रोत है तथा लोकतान्त्रिक पद्धति में जनप्रतिनिधि शासक होता हैl  दूसरी `कार्यपालिका`,जो शासनाधीन,शासन द्वारा योग्यतानुसार नियुक्त तथा शासन के प्रति उत्तरदायी होती हैl  इसका कार्य विधयिका की नीति,योजनाओं का क्रियान्वन करना तथा नए-पुराने नियम कानूनों का पालन तथा नियमनुसार द्वारा प्रशासन चलाना हैl इसके भी दो प्रमुख भाग होते हैं-प्रशासन एवं विधि व्यवस्था यानि पुलिसिंगl तीसरा किन्तु सबसे महत्त्वपूर्ण स्तंभ है `न्यायपालिका` जो संवैधानिक रूप से इन दोनों स्तंभों से ऊपर होती है और इसका कार्य लगभग मॉनिटर जैसा होता हैl अर्थात विधायिका द्वारा बनाए गए कानूनों की व्याख्या करना,उनके यथावत पालन पर नज़र रखना,उन पर व्यवस्था देना,सर्वोपरि है दण्ड प्रावधानों को सुनिश्चित करना तथा दंडात्मक कार्यवाही करना,दोष तथा दण्ड निर्धारण करनाl 

    एक है चौथा स्वयम्भू स्तंभ जिसका संविधान में कोई उल्लेख नहीं है,पर आज के समाज में यह स्वयं को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ निरुपित करता है,यह है `पत्रकारिताl` पत्रकारिता का प्रादुर्भाव तो अनादी काल से है तथा हर काल,हर क्रांति में यह प्रतिभागी भी रहा हैl देश की पराधीनता काल में भी पत्रकारिता का विशेष योगदान रहा हैl स्वतंत्रता संग्राम में अमृतबाज़ार पत्रिका,संवाद कौमुदी,रास्त गोफ्तार,सोम प्रकाश,केसरी

,प्रबुद्ध भारत एवं उद्बोध,इंडियन ओपीनियन(महात्मा गाँधी)सहित वंदे मातरम आदि उस समय के मुखर पत्र-पत्रिका थे,जिनके स्वतंत्रता संग्राम में योगदान को ना कोई नकार सकता है,न भूल सकता हैl

        स्वतंत्रता के बाद जैसे कई स्वतंत्रता सेनानियों ने सत्ता की राजनीति से मुँह मोड़ लिया,वैसे ही पत्रकारिता में भी स्वतंत्रता ध्वजधारियों ने सन्यास ले लिया,जो बचे थे उनमें भी एक अघोषित आचार संहिता का आधार थाl सत्य को सत्य कहने का साहस था,अतः वे राजनीति एवं प्रशासन के अच्छे दिग्दर्शक रहेl 

जहां राजनेताओं के देश हित से आत्महित का प्रदूषण हुआ एवं सब बदल गया,उसी प्रकार पत्रकारिता मैं भी चाटुकारिता का पुट आया और फिर स्वार्थसिद्धि,पीत पत्रकारिता आदि का दौर शुरू हो गयाl सत्तर का दशक आते-आते तक तो पत्रकारिता सरकार शरणागत जैसी हो गयीl धीरे-धीरे सड़कों से महलों तक बेधड़क समाचारग्राही खुद पेडल मशीन से अखबार छाप कर स्वयं सड़कों पर अखबार बेचने वाले पत्रकार इतिहास हो गएl उनके स्थान पर आ गए भवनों-अट्टालिकाओं से चलने वाले पूंजीवादी,राजनेता या समर्थक समाचार-पत्र,समाचार पत्र समूह और अंततः समाचार क्रांति-राजनीतिक भ्रान्ति,पैसा,पूंजी,पेपर कोटा और विज्ञापनों के बोझ तले दब गयी या कहें बिक गईl

        इस तथाकथित स्वयंभू चतुर्थ स्तंभ पर अभी तक नमी अवश्य बैठ गई थी,पर ज़ंग नहीं लगी थीl १९५९ में दृश्य-श्रव्य माध्यम( इलेक्ट्रानिक मीडिया)का प्रादुर्भाव हुआ,जिसने १९७६ तक स्वयं को `आकाशवाणी` से स्वतंत्र कर लिया,नाम मिला `दूरदर्शनl` प्रारंभ में तो यह शासनाधीन सूचना तंत्र रहा फिर मनोरंजन भी जुड गयाl पत्रकारिता का आयाम भी शासनाधीन जुड गया तथा इसका प्रयोग एवं प्रसारण दूरदर्शन केन्द्रों द्वारा होता रहाl यह एक प्रकार का सरकारी भोंपू तो अवश्य था,पर एक अचार संहिता थी,समाचारों एवं मनोरंजन कार्यक्रमों की एक शुचिता थी,शालीनता थीl संयोगवश कहा जा सकता है `कोरोना` त्रासदी में दूरदर्शन के वे कार्यक्रम पुनरावृत्ति में आज भी नयी पीढ़ी में रुचिपूर्वक देखे जा रहे हैंl 

        १९९४ में इस मीडिया का ज़ी टी.वी. की स्थापना के साथ व्यवसायीकरण हुआ,फिर स्टार और उसके बाद...l प्रारंभिक दौर में तो इनकी भी अपनी कुछ शुचिता थी,एक स्तर था समाचारों का भी और कार्यक्रमों का भीl फिर व्यापारिक होड़ चली,कौन-क्या परोस सकता हैl शुरू में धारावाहिक सामाजिक ही थे,फिर भयावह डरावने धारावहिक आएl जनजागरण की आड़ में आपराधिक धारावाहिक आए,जिन्होंने एक प्रकार से अपराध करने के तौर-तरीके सुगम कर युवा एवं बाल अपराध को न केवल बढ़ावा दिया,बल्कि एक प्रकार से प्रशिक्षण दियाl कितने ही पुलिस अन्वेषणों में पाया गया कि आपराधिक तौर-तरीके एवं प्रोत्साहन उन्होंने इन धारावाहिकों से पाया | 

        इलेक्ट्रानिक मीडिया में बढ़ती पत्रकारिता की होड़ ने तो शायद पत्रकारिता का चीर हरण ही कर डाला,पराकाष्ठा  

तो तब हुई,जब ये चैनल बिकाऊ हो गएl प्रिंट मीडिया की जैसी पीत पत्रकारिता ने यहाँ भी घर कर लियाl हरेक को दुकान चाहिए,तो बस एक एक पत्रकार एक-एक चेनल ले कर बैठ गया और खुले आम यह तथा कथित चौथा स्तंभ सार्वभौम,सर्वज्ञ ,सर्वशक्तिमान बन बैठाl इस स्तंभ की सर्वज्ञ सार्वभौमता के प्रमाण,आप घर में बैठे महसूस कीजिए,संसद में सत्र चल रहा है संसद के बाहर एक व्यक्ति अपने संजय चक्षु से सैकड़ों मील दूर स्टूडियो में बैठे धृतराष्ट्र उद्घोषक को बताता है,संसद में क्या हो रहा है,रक्षा मंत्री,वित्तमंत्री या प्रधानमंत्री क्या बोल रहे हैंl वह देश की रक्षा नीतियों,रक्षा शस्त्रास्त्रों,रक्षा सौदों,रक्षा बजट का ज्ञान देते-देते बोलने लगता है,रक्षा मंत्री को क्या करना चाहिए, सेनाध्यक्ष को क्या करना चाहिए आदिl यह स्थिति यहाँ ही नहीं थम जाती,अगले ही पल यह सर्वज्ञ आपको आर्थिक,शिक्षा, चिकित्सा किसी भी विषय पर आधिकारिक ज्ञान,सूचना या भाषण देते हुए पाया जा सकता हैl जैसे दर्शक कुछ जानता ही नहींl उद्देश्य होता है भोली जनता में पैठ बनाना और टीआरपी बढ़ाना,ताकि अधिक से अधिक विज्ञापन पाए जा सकें,साथ ही भंडाफोड़ के डर से शासन-प्रशासन में अपनी दहशत बनायी जा सकेl

       इलेक्ट्रानिक मीडिया का एक और आयाम है-वागयुद्ध(डिबेट)l यह आम हो गया है,वही घिसे-पिटे चेहरे,पक्ष विपक्ष और सर्वगुण संपन्न हर विषय पर सुविज्ञ उद्घोषकl  कोई विषय-समाचार लेकर उद्घोषक जज साहब बन कर बैठ जाएंगे और शुरू हो जाएगा वागयुद्धl वाद-विवाद विद्वानों के मध्य विचारों का आदान-प्रदान है,विचारों का युद्ध विद्वदता की पहचान है,परन्तु टी.वी. में अक्सर अर्थहीन बहस के अतिरिक्त कुछ नहीं होताl अतिथियों  में भी अक्सर शालीनता,शिष्टाचार एवं अनुशासन का अभाव होता हैl वादी-प्रतिवादी,सभी चीख़ रहे होते हैं,सुनने वाले को कुछ समझ नहीं आता मसला क्या है ? कौन क्या कहना चाह रहा है,इसी के मध्य होता है विज्ञापन अंतराल का अबाध सिलसिलाl तीस-चालीस मिनिट की मारामारी के बाद वाद विवाद निष्कर्षहीन समाप्त हो जाता हैl              

एक और आयाम है,कम्प्यूटर ग्राफिक्स के चरम दुरूपयोग का,जिसके द्वारा ये देश की जनता को भ्रमित करते रहते हैंl बड़ी-बड़ी रिपोर्ट दिखाई जाती है-थर्राता हुआ पकिस्तान, अब पाकिस्तान के छक्के छूटेंगे,कांपता चीन,किम जोन उन ने ट्रम्प को सीधे धमकी दी,कौन जहाज कैसे उड़ कर पाकिस्तान को बर्बाद कर देगा आदि-आदिl इनके ग्राफिक्स में कमरे में बैठा दाउद दिखाया जा सकता है,तो सारे देशों की शस्त्रास्त्र,अणुबम क्षमता का ग्राफिक्स इनके पास होता हैl ये कहीं ग्राफिक्स से डराते हैं,कहीं लुभाते हैं,सत्यता से परे जनमानस को भरमाते हैंl

        तनाव पैदा करने और हाय-तौबा मचने में भी ये अपनी सानी नहीं रखतेl  `श्रमिक एक्सप्रेस में ९ श्रमिक मरे`,इस एक ही समाचार को एक चेनल बार-बार मुजफ्फरपुर रेलवे प्लेटफार्म पर एक महिला के शव पर से दो ढाई साल का बच्चा चादर उठाने के दृश्य को पूरा दिन दिखाता रहाl  चिल्ला-चिल्ला कर श्रमिकों की दुर्दशा का वृहत्तिकरण करता रहाl रेल दुर्घटना,हवाई दुर्घटना के आँखों देखे हाल जैसे ग्राफिक्स पल में तैयार,क्या क्या कहा जाए,हर एक दुर्घटना का शोर-शराबे के साथ वृहत्तिकरण करना ही शायद इनका व्यवसाय हैl वास्तव में तथ्यों,विस्तार एवं सत्यता की कमी को बार-बार दिखाना जैसे मजबूरी हैl 

        स्वयम्भू न्यायाधीश् बने इस चौथे स्तंभ के इलेक्ट्रोनिक तंत्र का एक और पक्ष है-आधे घंटे बीस मिनिट की विशेष रिपोर्टिंग् या समाचार में जब ये किसी की भी बखिया उधेड़ कर रख देंगेl इनके विशेष निशाने होते हैं जो जनता की दुखती नस होते हैं,जैसे-चिकित्सकों को राक्षस दिखाना,रेल विभाग,पुलिस विभाग इसके अलावा भी किसी भी शासकीय विभाग को कटघरे में खड़े कर पानी उतार देना इनके बायें हाथ का खेल हैl नेताओं तथा प्रशासन के बारे में अवश्य `पसंद अपनी-अपनी ख्याल अपना-अपना` का फार्मूला चलता हैl यह निश्चित है जो इनके निशाने पर होता है,ऐसे  निर्णायक भावावेग ढंग से प्रस्तुतिकरण करते हैं कि,दर्शक उच्चतम न्यायालय के समकक्ष धरना बनाने को मजबूर हो जाता हैl बस बख्शा है इन्होंने तो न्यायालयों को,जिनकी तलवार की धार शायद इनसे अधिक पैनी होती हैl     

        सकारात्मकता का अभाव इलेक्ट्रानिक मीडिया का सबसे बड़ा दोष हैl कभी भी कोई भी समाचार चेनल खोला जाए,एहसास होता है दुनिया में कहीं कुछ अच्छा नहीं हो रहा हैl सारे समाचारों में बलात्कार,हत्या,भयंकरतम दुर्घटनाएं,अपराध,प्राकृतिक आपदा,राजनीतिक उठापटक ही प्राथमिकता से होंगेl देश-दुनिया में निश्चित सकारात्मक भी होता है,वह क्यूँ घूम-घूम कर कर्णप्रिय ध्वनि प्रभाव के साथ नहीं दिखाया जा सकताl कीचड़ में कभी तो कमल खिला दोl 

        व्यक्तिवाद या व्यक्तिपूजा यूँ तो मानव स्वभाव है,हम किसी न किसी रूप में व्यक्तिपूजक हैं,तभी तो हम राजा को भगवान का प्रतिनिधि मानते हैंl हमारे देश में चौथे स्तंभ द्वारा इसका टीआरपी की खातिर पूरा-पूरा दुरूपयोग किया जाता हैl एक नेता,अभिनेता या क्रिकेटर के मरने पर जैसे सारी कायनात थम जाती है,उस दिन फिर अखबार या टी.वी. में फिर कुछ नहीं आएगाl भूकंप,कोरोना यहाँ तक कि सुशांत के मरने पर गृह मंत्री एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री की मीटिंग भी गौण हो गईl आप देखिए,देश में कितने सैन्य अधिकारी-सैनिक आतंकियों की गोलियों का शिकार होते हैं,कितनों के जीवन चित्रण को पूरा मीडिया समेटता हैl वही हाल है कोरोना वीर चिकित्सकों,पुलिसकर्मियों का,सिर्फ संख्या बतायी जाती हैl       

        आज के हालत में पूरी दुनिया सहमी-भयभीत है,पर जब टी.वी. खोलो,सिर्फ नकारात्मक ही खुलता हैl कोरोना आपदा प्रकृतिक है,या मानव आमंत्रित,है तो त्रासदीl हर तरफ अफरा-तफरी,मौत का तांडव,फिर पलायन की नकारात्मकता,मारा-मारी,पत्थरबाजीl माना सब सच है तो भी क्या, शासन के प्रयत्न क्षमता से अधिक नहीं हो रहे हैंl फिर सीमा के तनाव भी,आतंकी हमले भी,दुनिया की दुर्दशा से इंकार नहीं,सब दिखाओ पर कुछ तो संतुलन रखोl मानव मन कोमल होता है,कितना अवसाद परोसोगे,कुछ तो तरस खाओl `सूचना का अधिकार` है सूचना दो,डराओ मतl कभी कभी लगता है देश में यदि गृह युद्ध हुआ तो उसका दोषी नकारात्मक इलेक्ट्रानिक मीडिया ही होगाl 

        हमें अपनी लोकतांत्रिक प्रक्रिया को यदि सदाबहार जीवित रखना है,तो आवश्यक है स्वयं से ऊपर उठ कर पत्रकारिता के गुण-दोषों को पहचानें,इंगित करें,आवाज़ उठाएं और मीडिया को भी शाश्वत सूचना तंत्र बन कर उभारना होगा,स्वानुशासन करना होगाl नियामक तंत्र का काम नियम बनाना है,मीडिया को अनुपालन करना हैl यदि दंडात्मक प्रणाली से ही अनुशासन होना है,तो लोकतंत्र ही कहाँ रहाl बातों से नियमन अनुशासन हो,तो मीडिया को प्रबुद्ध कहा जा सकता है,वरना तो वह आज के युग की त्रासदी है हीl 

परिचय-कर्नल डॉ. गिरिजेश सक्सेना का साहित्यिक उपनाम ‘गिरीश’ है। २३ मार्च १९४५ को आपका जन्म जन्म भोपाल (मप्र) में हुआ,तथा वर्तमान में स्थाई रुप से यहीं बसे हुए हैं। हिन्दी सहित अंग्रेजी (वाचाल:पंजाबी उर्दू)भाषा का ज्ञान रखने वाले डॉ. सक्सेना ने बी.एस-सी.,एम.बी.बी.एस.,एम.एच.ए.,एम. बी.ए.,पी.जी.डी.एम.एल.एस. की शिक्षा हासिल की है। आपका कार्यक्षेत्र-चिकित्सक, अस्पताल प्रबंध,विधि चिकित्सा सलाहकार एवं पूर्व सैनिक(सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी) का है। सामाजिक गतिविधि में आप साहित्य -समाजसेवा में सक्रिय हैं। लेखन विधा-लेख, कविता,कहानी,लघुकथा आदि हैं।प्रकाशन में ‘कामयाब’,’सफरनामा’, ‘प्रतीक्षालय'(काव्य) तथा चाणक्य के दांत(लघुकथा संग्रह)आपके नाम हैं। आपकी रचनाएं पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हैं। आपने त्रिमासिक द्विभाषी पत्रिका का बारह वर्ष सस्वामित्व-सम्पादन एवं प्रकाशन किया है। आपको लघुकथा भूषण,लघुकथाश्री(देहली),क्षितिज सम्मान (इंदौर)लघुकथा गौरव (होशंगाबाद)सम्मान प्राप्त हुआ है। ब्लॉग पर भी सक्रिय ‘गिरीश’ की विशेष उपलब्धि ३५ वर्ष की सगर्व सैन्य सेवा(रुग्ण सेवा का पुण्य समर्पण) है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-साहित्य-समाजसेवा तो सब ही करते हैं,मेरा उद्देश्य है मन की उत्तंग तरंगों पर दुनिया को लोगों के मन तक पहुंचाना तथा मन से मन का तारतम्य बैठाना है। आपके पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचंद, आचार्य चतुर सेन हैं तो प्रेरणापुंज-मन की उदात्त उमंग है। विशेषज्ञता-सविनय है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“देश धरती का टुकड़ा नहीं,बंटे हुए लोगों की भीड़ नहीं,अपितु समग्र समर्पित जनमानस समूह का पर्याय है। क्लिष्ट संस्कृतनिष्ठ भाषा को हिन्दी नहीं कहा जा सकता। हिन्दी जनसामान्य के पढ़ने,समझने तथा बोलने की भाषा है,जिसमें ठूंस कर नहीं अपितु भाषा विन्यासानुचित एवं समावेशित उर्दू अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग वर्जित न हो।”

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