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क्यों बदल जाता है आदमी

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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ऐ नर ये तेरी हिमाकत है,
तू जो चाहे सो करता है
डर नहीं है अपनी करनी का,
बेमौत तभी तो मरता है।

तू इतनी जल्दी बदल गया,
नहीं बात समझ में ये आयी
धन-दौलत,बीबी के चक्कर में,
मानवता‌ सभी बेच खायी।

अपनी उस माँ को भूल गया,
जिस माँ ने तुमको जन्म दिया
दिल तोड़ा है उस बापू का,
जिसके साये निर्भय सोया।

जिस बापू ने सबसे पहले,
गोदी में तुझे उठाया था
जिसने कांधे पर बिठला कर,
सारा‌ संसार दिखाया था।

जिसने बोझा ढो-ढो कर के,
तुझको परवान चढ़ाया था
खुद अपना पेट काट कर के,
तेरा ये बदन बनाया था।

तुमसे तो यही अपेक्षा थी,
जीवनभर साथ निभायेगा
ये कभी नहीं सोचा था कि,
तू ऐसे दिन दिखलाएगा।

जिस माँ ने गीले में सो कर,
सूखे में तुझे सुलाया था
अपने आँचल की छाया में,
छाती से दूध पिलाया था।

तुझको पढ़ा-लिखा कर के,
अपने पैरों पर खड़ा किया
तुमने उनके उपकारों का,
सोचा है कैसा सिला दिया।

बस यही हिमाकत है तेरी,
के तुमने उन्हें भुलाया है
जब तुम्हें सहारा बनना था,
वृद्धाश्रम में पहुंचाया है।

स्वारथ में अन्धा होकर के,
तू यही गलतियां कर बैठा
आशीषों से वंचित होकर बस,
भगवान को है तू खो बैठा।

ईश्वर हैं मात‌-पिता तेरे,
तुमने उनका अपमान किया
पछताएगा सिर धुन-धुन कर,
अब भी प्रायश्चित जो नहीं कियाll

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।

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