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औचित्यहीन खर्चीले विवाह समारोह

राधा गोयल
नई दिल्ली
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मुझे तो आज तक भी समझ नहीं आया कि दिखावे के लिए शादी-विवाह समारोह पर इतना अधिक खर्च क्यों किया जाता है ? एक शादी पर १ करोड़ रुपया खर्च कर दिया जाता है। शादी के लिए महंगे से महंगा बैंक्वेट हॉल बुक लिया जाता है। ५० तरह के व्यंजन,सलाद,शीतल पेय और न जाने क्या-क्या…। सबसे बड़ी बात-महिला संगीत यानी नाच पर बेहिसाब पैसा खर्च किया जाता है,जबकि गाने के नाम पर मंच पर एक-एक पंक्ति ही गाने का समय मिलता है,लेकिन उसके लिए घर का कामकाज छोड़कर १० दिन तक अभ्यास करने जाना पड़ता है। क्या पहले शादियाँ नहीं होती थीं, घर की महिलाएं बिना किसी तैयारी के कितना धूम-धड़ाका करती थीं। आज उसकी जगह नृत्य ने ले ली है।
इस बात को एक संस्मरण सहित बताना चाहूँगी। मेरा सबसे छोटा देवर व्यापारी है। उसके संबंध भी ज्यादातर व्यापारियों के साथ ही हैं। लड़के की शादी बहुत धूमधाम से की। शादी के निमन्त्रण कार्ड का डब्बा इतना बड़ा था कि सिर्फ उसी की कीमत ₹ १२०० थी और मिठाई के नाम पर केवल नाम मात्र की मिठाई। उसी के अंदर कार्ड भी रखा हुआ था,जो बेहद महंगा था। कोरियोग्राफर तय किया हुआ था। रोजाना घर से मेरी बहू भी अभ्यास के लिए जाती थी। हालाँकि,वह केवल १० दिन गई और परेशान हो गई। देर रात को घर लौटना और मेरी देवरानी को सबका खाना भी बनाना पड़ता था,क्योंकि मेरी बेटी,दूसरे देवर की बेटी व बहुएँ भी अभ्यास के लिए आती थीं। यही हाल लड़की वालों का भी था। उनके यहाँ भी रोजाना नृत्य कराया जाता था। यह टशन लगभग २ महीने तक चलता रहा। जब सगाई हुई तो केवल एक-एक पंक्ति ही बोलने के लिए हिस्से में आई…।
सगाई तथा शादी में बहू को डेढ़-डेढ़ लाख ₹ के लहँगे चढ़ाए,जो पूरे जीवन में शायद केवल एक-आध बार ही पहना जाता है। ऊपरी तड़क-भड़क का आजकल कोई हिसाब ही नहीं है। तस्वीरबाजी में अधिक से अधिक समय लगाया जाता है,लेकिन फेरे करते समय पंडित जी को स्पष्ट निर्देश दिया जाता है कि कम से कम समय में करवा दें।पंडित जी क्यों एतराज करेंगे,उनको तो अपनी दक्षिणा से मतलब है।
२५ साल पहले का एक किस्सा याद आ रहा है। किसी परिचित ने अपने बेटे की शादी पर डेढ़ करोड़ रुपए खर्च किया था। २५ वर्ष पहले डेढ़ करोड़ रुपए का हिसाब समझ लो,और १ साल बाद ही तलाक हो गया।
बैंक्वेट हॉल वाले भी खूब कमाते हैं। आजकल प्लेट सिस्टम होता है। यदि ५०० में से १०० प्लेट भी धीरे-धीरे करके सरका दीं तो भी हाॅल के मालिक को तो ५०० प्लेट का ही पैसा मिलेगा।
जब स्नैक्स खाकर पेट भर लेते हो,तो बड़ी प्लेट में खाना लेने की जरूरत क्या है ?,जबकि खाते भी नहीं हो,या केवल १-१ चम्मच खाते हो। इससे बेहतर है कि एक ही प्लेट में खाना लगाकर ४ लोग गपशप मारते हुए खाने का लुत्फ़ लो। हम तो ऐसे ही करते हैं। फिर भी कुछ लोग ऐसे भी होते हैं… खाएंगे थोड़ा-सा,लेकिन प्लेट पूरी भर लेंगे और बाद में उसे कूड़ेदान में डाल देंगे। शायद जूठा छोड़ना भी उनका शगल है। पता नहीं क्यों…यह सब मुझसे बर्दाश्त नहीं होता।
शादियों पर व्यर्थ का दिखावा करने से बेहतर है कि,उन पैसों को बच्चों के नाम पर स्थाई जमा करा दिया जाए,जिससे उनका वैवाहिक जीवन सुखपूर्वक चलता रहे। शादी पूरे रीति-रिवाज के साथ हो,उसका मजा ही अलग होता है।
अभी ४ दिन पहले ही हमारे पड़ोस में शादी थी। सुबह साढ़े ४ बजे लड़की की विदाई हो रही थी। देखकर सुखद आश्चर्य हुआ कि,लड़की पालकी में बैठकर विदा हुई,क्योंकि यह वास्तव में आजकल के जमाने में आश्चर्यचकित करने वाली बात थी। लड़की वालों ने घर के बाहर जो सजावट की थी,वह कृत्रिम फूलों से की थी। ४ दिन हो गए हैं,पर घर उसी तरह से सजा हुआ है और बहुत सुंदर लग रहा है। शादी में बैंक्विट हॉल किया था,लेकिन फिजूल की टीम-टाम नहीं थी। सीमित व्यंजन,सीमित लोग थे और शादी पूरे रीति-रिवाज से संपन्न हुई। कोई नृत्य नहीं हुआ और फिजूल के दृश्य बना-बनाकर तस्वीर नहीं ली गई।
मैं समझती हूँ कि ऐसे समसामयिक मुद्दों पर लिखा जाए,बदलाव जरूर आएगा।

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