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गगन का चाँद

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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शरद पूर्णिमा स्पर्धा विशेष…..

करे गगन का चाँद भी,सभी को अमृत दान।
शीतलता दे चंद्रमा,करे सभी रस पानll

शरद पूर्णिमा में करें,राधा-कृष्णा रास।
शरद पूर्णिमा में तभी,करें सभी विश्वासll

रहे गगन का चाँद भी,आज धरा के पास।
दूर गगन में चाँद से,बुझती सबकी प्यासll

कहते हैं कोजागरी,इसे यहाँ कुछ लोग।
श्वेत धवल सुन्दर सरल,मिले रश्मि का भोगll

शीतल सुन्दर चाँदनी,बिखरे जब चहुँ ओर।
माँ लक्ष्मी करतीं भ्रमण,धरती में हर ओरll

शास्त्रों में है लेख ये,माँ जन्मी थी आज।
कितनी पावन शुभ घड़ी,शरद पूर्णिमा आजll

तुलसी चौरा पूजिये,बनते बिगड़े काज।
मान मिले सम्मान हो,रहता सब पर राजll

दूध भात की खीर में अमृत चाँद मिलाय।
जिसे मिले यह खीर वो,अमृत का रस पायll

परिचय-हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।

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