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जीने का हक़

गरिमा पंत 
लखनऊ(उत्तरप्रदेश)

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मैं भी औरत हूँ,
क्या मुझे भी जीने का हक़ है!
खुद का अस्तित्व मिटाकर
किसी का घर बसाती हूँ।
घर की सारी जिमेदारियों को उठाती हूँ,
हर युग में मुझे ही सारी परीक्षा देनी पड़ती है
क्या मुझे भी जीने का हक़ है!
ममता की मूरत हूँ,
सबका ध्यान रखती हूँ
फिर भी मेरे हर अरमान को दबा दिया जाता है,
मुझे माँ की गुड़िया समझा जाता है
क्या मुझे भी जीने का हक़ है!
मेरा हर कदम पर अपमान किया जाता है,
मुझे हर समय छला गया
मेरे हक़ में मुझे कुछ नहीं मिला,
कब तक बेड़िया पैरों में पड़ी रहेंगी
क्या मुझे जीने का हक़ नहीं है!
मैं भी जीना चाहती हूँ,
मैं अपना सम्मान चाहती हूँ
मैं आसमान में उड़ना चाहती हूँ।
बेड़ियों को तोड़ कर उड़ जाना चाहती हूँ,
मुझे भी जीने का हक़ है॥

परिचय-गरिमा पंत की जन्म तारीख-२६ अप्रैल १९७४ और जन्म स्थान देवरिया है। वर्तमान में लखनऊ में ही स्थाई निवास है। हिंदी-अंग्रेजी भाषा जानने वाली गरिमा पंत का संबंध उत्तर प्रदेश राज्य से है। शिक्षा-एम.बी.ए.और कार्यक्षेत्र-नौकरी(अध्यापिका)है। सामाजिक गतिविधि में सक्रिय गरिमा पंत की कई रचनाएँ समाचार पत्रों में छपी हैं। २००९ में किताब ‘स्वाति की बूंदें’ का प्रकाशन हुआ है। ब्लाग पर भी सक्रिय हैं।

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