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प्रभु भक्ति में लगा पूरा मन

कुँवर बेचैन सदाबहार
प्रतापगढ़ (राजस्थान)
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महाकवि गोस्वामी तुलसीदास (२४ जुलाई) जयंती स्पर्धा विशेष

बाकी तो सब चमकते जुगनू हैं,
फैलाए उजाला वो बस रवि है।
जिसने रचा है रामचरित मानस,
कोई साधारण नहीं वो महाकवि है।
प्रथम प्रणाम माते हुलसी देवी को,
नौ की बजाय बारह माह रही गर्भ को।
सामान्य गर्भ नौ का ही होता है,
एक लाल माँ की कोख में बारह महीने सोता है।
बारह मास में हुलसी को हुई पीर,
श्रावण शुक्ल सप्तमी धरयो शरीर।
पिता आत्माराम दुबे बोले-यह क्या किया नाथ!
जन्मते बच्चे के मुख में दे दिए पूरे बत्तीस दाँत।
बच्चा जन्मा तब राम का नाम मुख से बोला,
मात-पिता ने बच्चे का नाम ही रख दिया ‘रामबोला।’
जन्म के दूसरे दिन रामबोला की माँ चल बसी,
पिता के मन में अशुभ बालक होने की बात जँची।
पिता हुए भयभीत प्रभु यह कैसी मनमानी,
रामबोला को कर सुपुर्द दासी के,सन्यांस की ठानी।
पाचं बरस तक पाल-पोस कर बड़ा करती दासी चुनिया,
पर विधाता को कुछ और मंजूर था,वह भी छोड़ चली दुनिया।
मिला ना रामबोला को किसी का साथ,
बड़ा होता रहा यह रामबोला अकेला अनाथ।
रामबोला के कुछ कारनामे चर्चित होते गए,
और आपपास के लोग इन पर गर्वित होते रहे।
भूल गए जमाने के सबके शिकवे और गिले,
जब उनको गुरू संत नरहरीदास जी मिले।
रामबोला से मगंवाई ले जाकर भिक्षा,
फिर दी धर्म और आध्यात्मिक शिक्षा।
अयोध्या से उप्र ले जाकर कर खूब परखा,
तब रामबोला का नाम ‘तुलसीदास’ रखा।
तुलसीदास भी कमाल के कारनामे कर लेता,
जो सुना,एक ही बार में कंठस्थ कर लेता।
२९ बरस में फिर बदली तुलसीदास की नियमावली,
पत्नी के रूप में मिली नवयौवना रूपमती रत्नावली।
रत्नावली विवाह के बाद हुई तुलसीदास से दूर,
इतनी याद आई उसकी,पास जाने को हुए मजबूर।
वो इतने हो गए पत्नी की याद में व्याकुल,
तूलसी भूले लोक-लाज धरम और कुल।
काली अँधेरी रात और घनघोर घटा छा रही थी,
पति-पत्नी के मिलन में यमुना नदी आड़े आ रही थी।
प्रेम अंधा था,तुलसीदास सब बाधा पार कर गए,
मिलन हेतु आधी रात में पत्नी के पास पहुँच गए।
रत्नावली गोना ना होने से लोक-लाज से डरी,
और तुलसीदास को कुछ बातें कही खोटी- खरी।
हाथ जोड़ बोली रत्नावली-हे नाथ मेरी बात मानो,
तुरंत यहाँ से आप अपने घर को जाओ।
‘अस्थि चर्म देह यह तो ऐसो प्रीति,
नेकु जो होती राम से काहे भयभीत।’
रत्नावली ने छोड़े जब यह शब्द बाण,
तुलसी के हदय पर लगे,निकले प्राण।
आसक्ति को जाना भवसागर पार में बाधा,
तुलसीदास ने किया घर-बार-पत्नी छोड़ने का इरादा।
जब जीवन का करना चाहा तारण,
तो किया सन्यांसी का वेश धारण।
माला जपने लगे प्रभु नाम की,
और कथा शुरू की श्री राम की।
भक्ति रस में तुलसीदास जी खोने लगे,
और गाँव-गाँव चौपाल-चौपाल कथा पढ़ने लगे।
पूरी भक्ति का वैराग्य उनमें दिखा,
रामचरित मानस को उन्होंने लिखा।
प्रभु भक्ति में लगा उनका पूरा मन,
लिखा रामचरित मानस,लगे ३१ माह २६ दिन।
उसको पढ़ा तो आँखें मेरी भी भर आई,
तुलसीदास को हनुमानजी मिले और कुछ बातें बताई।
तुलसीदास जी हनुमानजी का अनुसरण करने लगे,
चित्रकूट के घाट पर आश्रम बना के रहने लगे।
एक रोज कदमगिरी पर्वत पर तुलसी से श्री राम मिले,
जिनको संदेह है ‘प्रताप’ पर वह तुलसी की ‘गीतावली’ पढ़ लें।
११२ बरस में अमरत्व को पा लिया,
प्रभु भक्ति में लीन होकर शरीर त्याग दिया।
जो तुलसीदास ने लिखा है,ऐसा तो न कोई लिख पाएगा,
उनके लिखे को ही पढ़ लो तो भवसागर तर जाएगा॥

परिचय-कुँवर प्रताप सिंह का साहित्यिक उपनाम `कुंवर बेचैन` हैl आपकी जन्म तारीख २९ जून १९८६ तथा जन्म स्थान-मंदसौर हैl नीमच रोड (प्रतापगढ़, राजस्थान) में स्थाई रूप से बसे हुए श्री सिंह को हिन्दी, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। राजस्थान वासी कुँवर प्रताप ने एम.ए.(हिन्दी)एवं बी.एड. की शिक्षा हासिल की है। निजी विद्यालय में अध्यापन का कार्यक्षेत्र अपनाए हुए श्री सिंह सामाजिक गतिविधि में ‘बेटी पढ़ाओ और आगे बढ़ाओ’ के साथ ‘बेटे को भी संस्कारी बनाओ और देश बचाओ’ मुहिम पर कार्यरत हैं। इनकी लेखन विधा-शायरी,ग़ज़ल,कविता और कहानी इत्यादि है। स्थानीय और प्रदेश स्तर की साप्ताहिक पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में स्थानीय साहित्य परिषद एवं जिलाधीश द्वारा सम्मानित हुए हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-शब्दों से लोगों को वो दिखाने का प्रयास,जो सामान्य आँखों से देख नहीं पाते हैं। इनके पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद,हरिशकंर परसाई हैं,तो प्रेरणापुंज-जिनसे जो कुछ भी सीखा है वो सब प्रेरणीय हैं। विशेषज्ञता-शब्द बाण हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी केवल भाषा ही नहीं,अपितु हमारे राष्ट्र का गौरव है। हमारी संस्कृति व सभ्यताएं भी हिंदी में परिभाषित है। इसे जागृत और विस्तारित करना हम सबका कर्त्तव्य है। हिंदी का प्रयोग हमारे लिए गौरव का विषय है,जो व्यक्ति अपने दैनिक आचार-व्यवहार में हिंदी का प्रयोग करते हैं,वह निश्चित रूप से विश्व पटल पर हिन्दी का परचम लहरा रहे हैं।”

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