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चीन को सबक सिखाने का वक्त

डाॅ. मधुकर राव लारोकर ‘मधुर’ 
नागपुर(महाराष्ट्र)

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हिंदी चीनी भाई-भाई नारा १९६२ में लगाया गया था। परिणाम स्वरूप चीन ने हमारे साथ धोखा किया और हमारे देश पर हमला किया। उस समय चीन हमसे मुँह की खाने के बाद भी हमारी सरहदों को निरन्तर हड़पने और अपने फायदे के लिए उपयोग करने का प्रयास करता रहा है।
हम शांति और अमन के लिए पूरे विश्व में जाने जाते हैं। शायद चीन हमें कमजोर और कायर समझता है और सैन्य गतिविधियों व दादागिरी से लद्दाख जो हमारा है,उसे हड़पना चाहता है। परिणामस्वरूप १५ जून को चीन ने हमारे २० फौजी जवानों को क्रूर तरीके और धोखे से मार दिया,जबकि भारतीय सेना के जवान चीन को हमारे इलाके से जाने को कह रहे थे।
चीन का इरादा स्पष्ट है। वह वर्तमान समय में,जिसमें हर देश कोरोना विषाणु से निपटने की व्यवस्था कर रहा है,तो चीन अवसर का लाभ ले रहा हैl अब चीन ने रक्षा बजट बढ़ाया है। स्पष्ट है कि चीन अपने देश की सैन्य शक्तियों का विस्तार करने में रक्षा बजट का उपयोग करेगा, जबकि चीन ने ही दुनिया कोकोरोना` की सौगात दी है। चीन के नापाक इरादों को नेस्तनाबूत करने का वक्त आ गया है। हमें तरीके और मजबूती से चीन को जवाब देना होगा-भारतीय,जो चीन का उत्पाद खरीदते हैं,उसे पूर्ण रूप से नकारना होगा और स्वदेशी को, अपनाना होगा। चीन के साथ हमें मित्रता की उम्मीद त्यागनी होगी और शत्रु मानना होगा। हमारे निकटवर्ती देश नेपाल,भूटान,जिसका इस्तेमाल वह हमारे विरुद्ध करता है,उन्हें नियंत्रित करना होगा। हमारी सैन्य शक्ति बढ़ानी होगी। भारत ने अभी रूस से हैलीकाप्टर वगैरह खरीदा है। हर भारतीय देश की रक्षा हेतु अपना सहयोग दे। इसमें राजनीति कतई नहीं होनी चाहिए। सबसे बड़ी बात हमें हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनना होगा,वह भी सभी को मिल-जुलकर।
अभी १५ दिन में हमारे देश के प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री बारी-बारी से लद्दाख सीमा में गए,और हमारे देश के जवानों के साथ मिलकर स्थिति की समीक्षा कर चुके हैं। इससे सेना का मनोबल ऊँचा है।

विश्व स्तर पर भी महाशक्तियों ने भारत का समर्थन किया है और विश्व के सभी देश चीन से इसलिए भी नाराज हैं कि,उसने विश्व को कोरोना का उपहार दिया है। अभी भारत को सभी देशों का समर्थन मिलने के कारण चीन डरा हुआ है और उसका मनोबल हमारे विरुद्ध टूट चुका है। इस स्थिति में चीन को सबक सिखाने का अच्छा अवसर हमारे हाथों में है।

परिचय-डाॅ. मधुकर राव लारोकर का साहित्यिक उपनाम-मधुर है। जन्म तारीख़ १२ जुलाई १९५४ एवं स्थान-दुर्ग (छत्तीसगढ़) है। आपका स्थायी व वर्तमान निवास नागपुर (महाराष्ट्र)है। हिन्दी,अंग्रेजी,मराठी सहित उर्दू भाषा का ज्ञान रखने वाले डाॅ. लारोकर का कार्यक्षेत्र बैंक(वरिष्ठ प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त)रहा है। सामाजिक गतिविधि में आप लेखक और पत्रकार संगठन दिल्ली की बेंगलोर इकाई में उपाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-पद्य है। प्रकाशन के तहत आपके खाते में ‘पसीने की महक’ (काव्य संग्रह -१९९८) सहित ‘भारत के कलमकार’ (साझा काव्य संग्रह) एवं ‘काव्य चेतना’ (साझा काव्य संग्रह) है। विविध पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी को स्थान मिला है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में मुंबई से लिटरेरी कर्नल(२०१९) है। ब्लॉग पर भी सक्रियता दिखाने वाले ‘मधुर’ की विशेष उपलब्धि-१९७५ में माउंट एवरेस्ट पर आरोहण(मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व) है। लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी की साहित्य सेवा है। पसंदीदा लेखक-मुंशी प्रेमचंद है। इनके लिए प्रेरणापुंज-विदर्भ हिन्दी साहित्य सम्मेलन(नागपुर)और साहित्य संगम, (बेंगलोर)है। एम.ए. (हिन्दी साहित्य), बी. एड.,आयुर्वेद रत्न और एल.एल.बी. शिक्षित डाॅ. मधुकर राव की विशेषज्ञता-हिन्दी निबंध की है। अखिल भारतीय स्तर पर अनेक पुरस्कार। देश और हिन्दी भाषा के प्रति विचार-
“हिन्दी है काश्मीर से कन्याकुमारी,
तक कामकाज की भाषा।
धड़कन है भारतीयों की हिन्दी,
कब बनेगी संविधान की राष्ट्रभाषा॥”

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