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सैनिक को सजदा

मधुसूदन गौतम ‘कलम घिसाई’
कोटा(राजस्थान)
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सर्द काँपती जिसके डर से,
आतप को भी आये पसीना।
मातृभूमि पर मरकर सीखे,
सैनिक असल में जीवन जीना।
कदम बढ़े तो राह रोक ले,
सर्दी गर्मी या बरसातें।
ऐसे बदले बदले मौसम,
सैनिक को डिगा नहीं पाते।
पर्वत काँपे अवनी डोले,
या सागर खाये हिचकोले।
सैनिक मगर अडिग ही रहता,
चाहे कहीं पर कुछ भी हो ले।
रिपु रक्त का बहना जिसको,
हरदम न्यारा लगता है।
आन वतन की मान वतन का,
जिसको प्यारा लगता है।
होली ओर दीवाली अपनी,
इसीलिए तज देते हैं।
ताकि मना सके सब इनको,
सो बाना वासन्ती सज लेते हैं।
मिट्टी के कण कण से घर का,
राग सन्देशा घर का लेते।
आते जाते मेघों से घर,
अपना सन्देशा सब देते।
बच्चों की किलकारी को भी,
सनन-सनन मारुत में चुनते।
पेड़ों के झुरमुट में रुककर,
मात-पिता की लोरी सुनते।
जब भी खिलता फूल कहीं पर,
गजरा गन्ध महक जाती।
करती नदियां कल-कल जब,
गौरी बात बहक जाती।
हर रिश्ते को हर भावों को,
सरहद पर बुनते रहते।
चन्दा सूरज से बतिया कर,
उनको परम् सखा कर लेते।
शब्दों की औकात कहाँ जी,
स्तुति करे सैनिक छवि की।
‘कलम घिसाई’ लिखने वाली,
कलम कहाँ से लाए कवि की॥

परिचय–मधुसूदन गौतम का स्थाई बसेरा राजस्थान के कोटा में है। आपका साहित्यिक उपनाम-कलम घिसाई है। आपकी जन्म तारीख-२७ जुलाई १९६५ एवं जन्म स्थान-अटरू है। भाषा ज्ञान-हिंदी और अंग्रेजी का रखने वाले राजस्थानवासी श्री गौतम की शिक्षा-अधिस्नातक तथा कार्यक्षेत्र-नौकरी(राजकीय सेवा) है। कलम घिसाई की लेखन विधा-गीत,कविता, लेख,ग़ज़ल एवं हाइकू आदि है। साझा संग्रह-अधूरा मुक्तक,अधूरी ग़ज़ल, साहित्यायन आदि का प्रकाशन आपके खाते में दर्ज है। कुछ अंतरतानों पर भी रचनाएँ छ्पी हैं। फेसबुक और ऑनलाइन मंचों से आपको कुछ सम्मान मिले हैं। ब्लॉग पर भी आप अपनी भावनाएं व्यक्त करते हैं। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समय का साधनामयी उपयोग करना है। प्रेरणा पुंज-हालात हैं।

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