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कल

बाबूलाल शर्मा
सिकंदरा(राजस्थान)
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(रचनाशिल्प:मापनी-२१२२ २१२२,४ चरण का छंद है-दो दो चरण सम तुकांत हो चरणांत में,२२,या २११ हो,चरणारंभ गुरु से अनिवार्य है,३,१०वीं मात्रा लघु अनिवार्य)
काल से संग्राम ठानो!
साहसी की जीत मानो!
आज आओ मीत सारे!
काल-कल बातें विचारे!

सोच ऊँची बात मानव!
भाव होवें मान आनव!
आज है तो कल रहेगा!
सोच कैसे जल बचेगा!

पुस्तकों से नेह जोड़ो!
वेद ग्रंथों को न छोड़ो!
भारती की आरती कर!
मानवी मन भाव ले भर!

कंठ मीठे गीत गाना!
आज को कर लें सुहाना!
आज है तो मान ले कल!
वायु नभ ये अग्नि भू जल!

चेतना मानव पड़ेगा!
आज से ही कल जुड़ेगा!
दूर दृष्टा सृष्टि पालक!
काल-कल के चक्र चालक!

आलसी क्यों हो पड़े जन!
आज ही कल खो रहे मन!
रुष्ट जन-मन को मनाओ!
आज ही कल को जगाओ!
(इक दृष्टि यहां भी:आनव=मानवोचित)

परिचय : बाबूलाल शर्मा का साहित्यिक उपनाम-बौहरा हैl आपकी जन्मतिथि-१ मई १९६९ तथा जन्म स्थान-सिकन्दरा (दौसा) हैl वर्तमान में सिकन्दरा में ही आपका आशियाना हैl राजस्थान राज्य के सिकन्दरा शहर से रिश्ता रखने वाले श्री शर्मा की शिक्षा-एम.ए. और बी.एड. हैl आपका कार्यक्षेत्र-अध्यापन(राजकीय सेवा) का हैl सामाजिक क्षेत्र में आप `बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ` अभियान एवं सामाजिक सुधार के लिए सक्रिय रहते हैंl लेखन विधा में कविता,कहानी तथा उपन्यास लिखते हैंl शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र में आपको पुरस्कृत किया गया हैl आपकी नजर में लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः हैl

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