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वीणा

बाबूलाल शर्मा
सिकंदरा(राजस्थान)
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वीणा-
वीणा में स्वर है नहीं,होती निश्चल मौन!
होता वादक मौन है,स्वर देता है कौन!
स्वर देता है कौन,कहाँ से ध्वनि आ जय भारत जय भारत धरती जाती!
अहो शारदा मात, कंठ वीणा में आती!
कहे लाल कविराय, सरे लय गीत अम्हीणा!
कसें संतुलित तार, गीत लय बजती वीणा!
(अम्हीणा~हमारा)

नैतिक-
शिक्षा ऐसी दीजिये,नैतिक रहे विचार!
आन मान अरमान के,सीखें सद आचार!
सीखें सद आचार,भले संस्कार सिखावें!
मान ज्ञान विज्ञान,देश की शक्ति दिखावें!
शर्मा बाबू लाल,चाह सदगुण की भिक्षा!
उत्तम बने स्वभाव,देश हित नैतिक शिक्षा!

विजयी-
हल्दीघाटी युद्ध में,उभय पक्ष वश मान!
मान मुगलिया सैन्य वर,मान प्रतापी शान!
मान प्रतापी शान,निभाई चेतक कीका!
कीका का सम्मान,मान का पड़ता फीका!
फीका हुआ गुलाल,लाल थी चन्दन माटी!
माटी विजयी गर्व,गुमानी हल्दीघाटी!
(कीका=महाराणा प्रताप)

भारत-
मेरा देश महान है,विविध बने मिल एक!
धर्म पंथ निरपेक्षता,संविधान जन नेक!
संविधान जन नेक,मूल अधिकार बतावे!
देश हितैषी कर्म,सभी कर्तव्य निभावे!
शर्मा बाबू लाल,स्वर्ण खग करे बसेरा!
गाते कृषक जवान,सुहाना भारत मेरा!

छाया-
छाया अम्बर की मिले,शैय्या धरती मात!
पवन सुनाये लोरियाँ,प्राकृत दे सौगात!
प्राकृत दे सौगात,करे तरु शीतल छाया!
छाया कुहरा शीत,मदन बासंती भाया!
शर्मा बाबू लाल,गीत छाया जो गाया!
छाया छायावाद,मनुज चाहे घर छाया!

निर्मल-
निर्मल तन मन वचन हो,जैसे गंगा नीर!
पवन निर्मला भूमि हो,सागर नद सर तीर!
सागर नद सर तीर,भाव भाषा मय कविता!
निर्मल शासन लोक,रोशनी चंदा सविता!
शर्मा बाबू लाल,खेत सर रहे न निर्जल!
सृष्टि धरा ब्रह्मांड,रहे जनमानस निर्मल!

भावुक-
भावे भजनी भावना,भोर भास भगवान!
भले भलाई भाग्य भल,भावुक भाव भवान!
भावुक भाव भवान,भजूँ भोले भण्डारी!
भरे भाव भिनसार,भाष भाषा भ्रमहारी!
भय भागे भयभीत,भ्रमित भँवरा भरमावे!
भगवन्ती भरतार,भगवती भोला भावे!

धरती-
सविता के परिवार में,ग्रह नक्षत्र अनेक!
प्राण पवन जल धारती,माता धरती एक!
माता धरती एक,उपग्रह चंदा भ्राता!
तारे करते छाँव,दिवाकर जीवन दाता!
शर्मा बाबू लाल,थके कवि कहते कविता!
धरती मात समान,धरा घूमें परि सविता!

मानव-
मानव जीवन भाग्य से,वसुधा पर अनमोल!
दुर्लभ देवों को लगे,जीवन महत्व सतोल!
जीवन महत्व सतोल,कर्म कर पर उपकारी!
त्याग देह का नेह,देशहित जन हितकारी!
शर्मा बाबू लाल,बनो कर्तव्यी आनव!
मानवता के हेतु,मनुज बन जाओ मानव!

गागर-
गागर में सागर भरे,कविजन बड़े प्रवीण!
पढ़ पढ़ होता बावरा,मन मानस मति क्षीण!
मन मानस मति क्षीण,भाव में बहता जाए!
ऋषि अगस्त्य मानिंद,सिंधु रस पीना भाए!
शर्मा बाबू लाल,बिन्दु सम प्रियवर सागर!
मिट्टी पात्र समान,चाह मन भर लूँ गागर!

परिचय : बाबूलाल शर्मा का साहित्यिक उपनाम-बौहरा हैl आपकी जन्मतिथि-१ मई १९६९ तथा जन्म स्थान-सिकन्दरा (दौसा) हैl वर्तमान में सिकन्दरा में ही आपका आशियाना हैl राजस्थान राज्य के सिकन्दरा शहर से रिश्ता रखने वाले श्री शर्मा की शिक्षा-एम.ए. और बी.एड. हैl आपका कार्यक्षेत्र-अध्यापन(राजकीय सेवा) का हैl सामाजिक क्षेत्र में आप `बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ` अभियान एवं सामाजिक सुधार के लिए सक्रिय रहते हैंl लेखन विधा में कविता,कहानी तथा उपन्यास लिखते हैंl शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र में आपको पुरस्कृत किया गया हैl आपकी नजर में लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः हैl

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