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नहीं भूल सकते हम ऐसे वीरों की कुर्बानी

निशा गुप्ता 
देहरादून (उत्तराखंड)

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चंद्रशेखर आजाद शहीद दिवस स्पर्धा विशेष………..

शीशे का खिलौना समझा तुमने,वो फ़ौलादी सीना था,
शूल बैनों से नहीं डरता जो अंगारों से खेला था।

नित-नित राग नए बजते हैं बेतरतीबी नारों से,
आ जाओ तुम,बांध कफ़न वो मझधारों में उतरा था।

आए कोई कभी भी विपदा,तूफानों से न डरता था,
रखता ज़िगर वो शोलों-सा,जो शीशे से पत्थर तोड़ता था।

घर हैं जिनके आलीशान वो ही पत्थर से डरते हैं,
वो फुटपाथों पर सोने वाला लड़ने का दम रखता था।

कोई मंज़र नहीं आया ऐसा जो रुख उनका मोड़ सके,
वो हिम्मत वाला ऐसा था,जो तूफ़ानों को मोड़ता था।

नहीं भूल सकते हम ऐसे वीरों की कुर्बानी,
जो कर कुर्बान खुद को,बाँध कफ़न सिर पर चलता था।

‘आजाद’ था उसका नाम,वो आजाद ही सदा रहा,
साँस-साँस लड़ते लड़ते वन्देमातरम गाता था॥

परिचयनिशा गुप्ता की जन्मतिथि १३ जुलाई १९६२ तथा जन्म स्थान मुज़फ्फरनगर है। आपका निवास देहरादून में विष्णु रोड पर है। उत्तराखंड राज्य की निशा जी ने अकार्बनिक रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर किया है। कार्यक्षेत्र में गृह स्वामिनी होकर भी आप सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत श्रवण बाधित संस्था की प्रांतीय महिला प्रमुख हैं,तो महिला सभा सहित अन्य संस्थाओं से भी जुड़ी हुई हैं। आप विषय विशेषज्ञ के तौर पर शालाओं में नशा मुक्ति पर भी कार्य करती हैं। लेखन विधा में कविता लिखती हैं पर मानना है कि,जो मनोभाव मेरे मन में आए,वही उकेरे जाने चाहिए। निशा जी की कविताएं, लेख,और कहानी(सामयिक विषयों पर स्थानीय सहित प्रदेश के अखबारों में भी छपी हैं। प्राप्त सम्मान की बात करें तो श्रेष्ठ कवियित्री सम्मान,विश्व हिंदी रचनाकार मंच, आदि हैं। कवि सम्मेलनों में राष्ट्रीय कवियों के साथ कविता पाठ भी कर चुकी हैं। इनकी लेखनी का उद्देश्य- मनोभावों को सूत्र में पिरोकर सबको जागरुक करना, हिंदी के उत्कृष्ट महानुभावों से कुछ सीखना और भाषा को प्रचारित करना है।

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