कुल पृष्ठ दर्शन : 353

ऐरों-गैरों को अपनाना पड़ता है

प्रदीपमणि तिवारी ध्रुव भोपाली
भोपाल(मध्यप्रदेश)
****************************************************************************
(रचनाशिल्प:वज़्न-२२२२ २२२२ २२२२ २२२)
ग़र्ज़ पड़े तो किसको क्या कुछ यार बनाना पड़ता है।
खुदग़र्ज़ी में ऐरों-गैरों को अपनाना पड़ता है।

नाकारों को साहब कहना और सियासत में जाना,
जोर जमाना उनका है तो संग निभाना पड़ता है।

पेंचोख़म में आज जमाना माहिर है अब संभलो भी,
ज़र्रे-ज़र्रे में रहजन तैयार बताना पड़ता है।

दो रोटी की खातिर ये इंसान जमाने भर घूमें,
ज़िल्लत कितनी हर पल में ज़ंजाल उठाना पड़ता है।

वक्त बुरा हो यार यतीमों की हालत भी पूछो मत,
दर्द पता करना हो तो बदतर वेश बनाना पड़ता है।

यार तिश्नग़ी भी बेहद बदतर शै कहते बात सुनो,
आब भले हो बदतर पीना और पिलाना पड़ता है।

आज जमाना जिनका वो ही सबके हैं सरदार बने,
यार मवाली को ‘ध्रुव’ अब सरदार बनाना पड़ता है॥

परिचय–प्रदीपमणि तिवारी का लेखन में उपनाम `ध्रुव भोपाली` हैl आपका कर्मस्थल और निवास भोपाल (मध्यप्रदेश)हैl आजीविका के लिए आप भोपाल स्थित मंत्रालय में सहायक के रुप में कार्यरत हैंl लेखन में सब रस के कवि-शायर-लेखक होकर हास्य व व्यंग्य पर कलम अधिक चलाते हैंl इनकी ४ पुस्तक प्रकाशित हो चुकी हैंl गत वर्षों में आपने अनेक अंतर्राज्यीय साहित्यिक यात्राएँ की हैं। म.प्र.व अन्य राज्य की संस्थाओं द्वारा आपको अनेक मानद सम्मान दिए जा चुके हैं। बाल साहित्यकार एवं साहित्य के क्षेत्र में चर्चित तथा आकाशवाणी व दूरदर्शन केन्द्र भोपाल से अनुबंधित कलाकार श्री तिवारी गत १२ वर्ष से एक साहित्यिक संस्था का संचालन कर रहे हैं। आप पत्र-पत्रिका के संपादन में रत होकर प्रखर मंच संचालक भी हैं।

Leave a Reply