कुल पृष्ठ दर्शन : 239

You are currently viewing किस राष्ट्रचेतना की बात करते हैं हम ?

किस राष्ट्रचेतना की बात करते हैं हम ?

श्रीमती लीना मेहंदले
गोवा
****************************

राष्ट्रचेतना का उदय राष्ट्र के चिंतन से होता है! राष्ट्र चिंतन होता है राष्ट्र के दर्शन या तत्वज्ञान से,लेकिन भारत के विद्वान शिक्षाविद पंडित लोग यह सोचते हैं कि भारत देश के पास अपना कहने लायक कोई तत्वदर्शन नहीं है! जिसे बात पर विश्वास ना हो,वह संघ लोक सेवा आयोग से पूछे। आयोग कहता है कि हमारा नीति शास्त्र हम प्लेटो,अरस्तु और पश्चिमी दार्शनिकों से सीखेंगे,ना कि भर्तृहरि या चाणक्य या महाभारत में वर्णित सुशासन की कल्पना से या रामराज्य की कल्पना से सीखेंगे! इसी कारण आयोग जो परीक्षा आयोजित करता है और जिसके माध्यम से प्रतिवर्ष देश के लिए सर्वोच्च नौकरशाही अधिकारी के तौर पर करीब १००० से १५०० के बीच अफसरों का चुनाव करता है,वह आयोग अपने अनिवार्य पर्चे में जो ‘एथिक्स’ नामक विषय रखता है,वह पूरा का पूरा पश्चिमी एथिक्स हमारे अफसर बनने की इच्छा रखने वाले छात्रों को पढ़ना पड़ता है! एथिक्स,जिसके लिए पूरी तरह से पश्चिमी विद्वानों की पुस्तकें पढ़ने का रिवाज है क्योंकि पश्चिमी विद्वानों के सिद्धांतों के विषय में ही प्रश्न पूछे जाते हैं।
मित्रों याद रखिए कि,यद्यपि केवल १२००अधिकारी हर वर्ष चुने जाते हैं,लेकिन इस पढ़ाई के लिए हर वर्ष नए १२००००० विद्यार्थी दौड़ में उतरते हैं,और केवल पश्चिमी नीति शास्त्र ही पढ़ते हैं। उनके दिमाग में यह बिल्कुल फिट बैठाया जाता है कि, भारत के पास न कोई नीति थी,न भारत के लोग कभी नीतिवान थे। इस प्रकार एक आत्मग्लानि से उन्हें भर दिया जाता है,हर वर्ष करीब १२ लाख बच्चों को।
इन प्रश्नों के लिए आयोग का उत्तर है कि हमारे देश में नीतिशास्त्र न कभी पढ़ा गया,न कभी हमारे देश की नीति वहां थी,इसलिए नीति वालों अफसर चुनने की गरज से वे उन्हें पश्चिमी नीतिशास्त्र पढ़ाने के लिए बाध्य करते हैं। हमारा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग कहता है कि हम तो अपने विश्वविद्यालयों में दर्शन शास्त्र का पाठ्यक्रम पश्चिमी पंडितों के बताए गए मार्ग का अनुसरण करते हुए बनाएंगे और इसमें भारतीय दर्शन केवल १० फीसदी रहेगा!, क्योंकि वास्तविकता में भारत के पास दर्शन शास्त्र जैसा कोई ज्ञान है ही नहीं,जिसे हम १० फीसदी दर्शन शास्त्र के लायक भी कहते हैं,वह भी मायथोलॉजी है,मिथ्या है,दर्शन शास्त्र नहीं है!
इसलिए मुझे तो यही दिखता है कि विवि अनुदान आयोग और सेवा आयोग ने पहले ही घोषणा कर दी है कि भारत के पास न तो अपना कोई दर्शन शास्त्र है,न अपना कोई एथिक्स! हमारे जो भी अफसर चुने जाएंगे या जिन्हें दर्शन शास्त्र में एम.ए. की उपाधि मिलेगी,वे सारे पढ़ाकू और नौकरशाह पश्चिमी चिंतन के मार्ग से चलेंगे! तो फिर हम किस राष्ट्रचेतना की बात करते हैं ? भारतीय भाषाओं के माध्यम से परीक्षा देने वाले भारतीय परिवेश में पले-बढ़े विद्यार्थी तो भारतीय चिंतन परम्परा और दर्शन से परिचित होते हैं,लेकिन उनकी भारतीय दर्शन और चिंतन के बजाए अरस्तू और प्लेटो के ज्ञान की परीक्षा ली जाती है। न तो यह न्याय संगत है और न व्यवहार संगत। यह राष्ट्र चेतना के भी अनुकूल नहीं है।
क्या हमारे देश में कोई अपना नीतिशास्त्र नहीं है ? क्या हमारे देश में कभी नीति से चलना ही नहीं सीखा ? क्या हमारा देश इतना अनीति पूर्ण था कि, हम अपने जीवन की नीतियों को पश्चिमी विद्वानों से ही पढ़ना चाहिए ?

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन,मुम्बई)

Leave a Reply