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‘माँ’ कहाँ क्या करती है!

डॉ. वसुधा कामत
बैलहोंगल(कर्नाटक)
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माँ कहाँ क्या करती है,बस चूल्हा-चक्की करके बस एक घर ही तो संभालती है। वो कहाँ क्या करती है…!
हम सब जानते हैं माँ की अहमियत को, फिर भी हम माँ से बात बात पर कह देते हैं। माँ तुमने कहाँ क्या किया,तुम बस चूल्हा-चक्की करना,कपड़े धोना,बरतन मांजना, झाडू लगाना,नाश्ता-खाना बनाना बस घर में ही तो रहती हो! तुम कहाँ क्या करती हो ?
माँ भी तो अजीब होती है न! हँसते-हँसते बोल देती है,-हाँ बेटा तुमने सच कहा,मैं कहाँ क्या करती हूँ। तुम जितना पढ़ी-लिखी नहीं हूँ ना! मैंने तो बस एम.ए. तक पढ़ लिया,और मेरी शादी तेरे बाबा से कर दी और क्या था बस मुझे तो सिर्फ घर ही तो संभालना था,पर मेरे बच्चों तुम अच्छे से पढ़ लिखकर बड़े-बड़े आफिसर बन जाना ठीक है। इस माँ का आर्शीवाद है तुम लोगों के साथ। हाँ,अब बहुत हो गई बातें,गरम-गरम दूध पी लेना ठीक है।
माँ होती ही ऐसी है। पता नहीं,क्यूँ और किसलिए सब सहन कर लेती है ? क्योंकि,माँ तो माँ होती है।
आज सुबह की बात ले लो,मुझे और सिर्फ माँ का जन्मदिन याद था। मैंने उठते ही मेरी माँ को जन्मदिन की शुभकामनाएँ दे दी। माँ बहुत खुश हो गई और बोली-“बेटी एक तू ही है,जो हर साल बिना भूले मुझे शुभकामनाएँ दे देती हो,पर एक वादा कर,इस बार किसी को तुम बोलोगी नहीं..यहाँ तक कि अपने पापा से भी नहीं।” माँ बड़ी खुश थी।
उसने खाने में स्पेशल चीजें बनाई। डायनिंग टेबल पर खाना लग गया। पापा, भाई और दीदी भी खाने के लिए आ गए। सभी ने परोसते समय एक-दूसरे से ईशारे किए,पर कोई पूछ नहीं रहा था कि,आज क्या है ? सभी ने भरपेट खाना खा लिया और रोज की तरह माँ को कॉम्प्लिमेंट्स दे कर चले गए।
माँ ने भी हँसते-हँसते रोज की तरह सभी साफ किया,और आँखों के आँसू आँखों में ही दबाते अंदर जा ही रही थी,तब मैंने माँ को आवाज़ लगाई तथा अपने कमरे में ले गयी और माँ का अलग से जन्मदिन मानाया। माँ को साथ लेकर पुराने गानों पर डांस किया। उसे मैंने अपनी कविता सुनवाई-
“ओ मेरी प्यारी माँ,
तुझसा कोई नहीं माँ
सदा मुस्कुराते रहती हो,
खुद के आँसू खुद पी जाती हो।
ओ मेरी भोली माँ,
कभी तो खुद के लिए जी लें
आज जन्मदिन तेरा,
मदमस्त होकर तू सारा प्यार
अपने पर ही लुटा दे।”
माँ की आँखें भर आई और मुझसे बोला,-“बेटी जब भी तुम्हें समय मिले,मुझसे खूब बातें करना ताकि मुझे लगे कि मैं सचमुच खुद की जिंदगी जी रही हूँ।” बस मैं इतना ही चाहती हूँ कि,मुझसे प्यार से बात करें। मैं इसलिए बोल रही हूँ,क्यूँकि यहाँ किसी को दो मीठी बातें करने के लिए भी किसी के पास समय नहीं,बहुत अकेलापन-सा लगता है”,ऐसा कहते-कहते उसकी आँखें भर आई।
माँ ने मुझे गले लगाया ही था कि, पापा गुस्से से आए और बोले -“गर माँ-बेटी की बातें हो गई हो तो भाग्यवान चलो अब। मैंने पापा से कहा,-“पापा आज के दिन तो माँ से अच्छे से बात करते।”
“क्यूँ किस लिए ? इसे शादी करके लाया है किसलिए,घर काम करने के लिए ही ना। बड़ी आयी मुझे बोलने…।” मुझसे नहीं रहा गया और मैंने बताया,-“पापा आज माँ का जन्मदिन है और आप माँ को इस तरह से बोल रहे हैं…..।”
पापा ने फिर बोला,-“इस उम्र में कोई जन्मदिन मनाता है। सठिया गई है तेरी माँ।” माँ चुपचाप गर्दन नीचे डाल कर सब सुन रही थी। पापा का चिल्लाना सुनकर भाई-बहन भी आ गए-“क्या हुआ ?,पापा क्यूँ इतना चिल्ला रहे थे ?”
मैंने बोला,-“आज माँ का जन्मदिन था,क्या आप लोगों को पता नहीं था ? माँ ने सुबह-सुबह स्पेशल खाना बनाया था,क्या तब भी आप लोगों को पता नहीं चला।” मेरी बातें सुनकर दोनों ने माफी तो मांगी फिर बोला, इतनी-सी बात थी तो बताना था ना,इसमें कौन-सी बड़ी बात थी,खुद बोल देती ना,ऐसे करती है,इसलिए पापा इस पर चिल्लाते हैं… ।” ऐसा कहते-कहते दोनों बाहर निकल गए।
मैं माँ की तरफ देखती रही और फिर बोला,-“माँ इतनी भी अच्छी मत बन माँ,कभी तो अपने दिल की बात दिल खोलकर बोल दें,वरना ये लोग ऐसे ही तुम्हें दबाते रहेंगे।”
माँ ने अपने आँसू पोंछ लिए और हँसते-हँसते बोल दिया-“इसकी मुझे आदत है बेटी, मैं कहाँ क्या करती हूँ कि,मेरा जन्मदिन मनाया जाएगा। अब तो मेरी ढलती उम्र है,तेरे पापा सही कहते हैं…। चलो अब तुम सो जाओ,” मेरे सिर पर हाथ सहलाते मुझे सुलाकर अपने कमरे में चली गई।
रोज की तरह बीती बातों को भूलकर कमर कस के रसोईघर में काम करने लगी, रोज की ही मुस्कान उसके मुख पर थी। रोज की तरह अंदर से आवाज़ आई….अरे! भाग्यवान,चाय आज मिलेगी या कल…चाय का प्याला लेकर चेहरे पर मुस्कुराहट लेकर पापा को चाय देने चली गई,और मैं माँ को देखती रह गई और सोचती रही आखिर माँ तो माँ ही होती है।

परिचय-डॉ. वसुधा कामत की जन्म तारीख २ अक्टूबर १९७५ एवं स्थान दांडेली है। वर्तमान में कर्नाटक के जिला बेलगाम स्थित बैलहोंगल में आपका बसेरा है। हिंदी,मराठी,कन्नड़ एवं अंग्रेज़ी सहित कोंकणी भाषा का भी ज्ञान रखने वाली डॉ. कामत की पूर्ण शिक्षा-बी.कॉम, कम्प्यूटर (आईटीआई) सहित एम.फिल. एवं पी-एच.डी. है। इनका कार्य क्षेत्र सह शिक्षिका एवं एन.सी.सी. अधिकारी का है। सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत समाज में जारी गतिविधियों में भाग लेना है। इनकी लेखन विधा-कविता,आलेख,लघु कहानी आदि है। प्रकाशन में ‘कुछ पल कान्हा के संग’ है तो अनेक पत्र-पत्रिकाओं में मुक्त भाव की कई रचनाएँ आ चुकी हैं। डॉ. कामत को भगवान बुध्द फैलोशिप पुरस्कार सहित ज्ञानोदय साहित्य पुरस्कार,रचना प्रतिभा सम्मान,शतकवीर सम्मान तथा काव्य चेतना सम्मान आदि मिल चुके हैं। इनके अनुसार डॉ. सुनील परीट का मार्गदर्शक होना विशेष उपलब्धि है। लेखनी का उद्देश्य-पाठकों को प्रेरणा देना और आत्म संतुष्टि पाना है। हिंदी के कई मंचों पर हिंदी का ही लेखन करने में सक्रिय डॉ. वसुधा कामत के लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक-कबीर दास जी एवं मुंशी प्रेमचंद हैं। प्रेरणापुंज-डॉ. परीट,संत कबीर दास,मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा,तुलसीदास जी एवं अटल जी हैं। आपकी विशेषज्ञता-मुक्त भाव से लिखना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हमें बहुत अभिमान है। हिंदी हमारी जान है। हमारे राष्ट्र को अखंडता में रखना अति आवश्यक है। हिंदी भाषा ही सभी प्रांतों को जोड़ सकती है,क्योंकि यह एकदम सरल भाषा है।

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