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जिसमें समाया सारा जहाँ

संजय जैन 
मुम्बई(महाराष्ट्र)

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एक अक्षर का शब्द है माँ,
जिसमें समाया सारा जहाँ
जन्मदायिनी बनके सबको,
अस्तित्व में लाती वो
तभी तो वो माँ कहलाती,
और वंश को आगे बढ़ाती
तभी वह अपने राजधर्म को,
माँ बनकर है निभाती।

माँ की लीला है न्यारी,
जिसे न समझे दुनिया सारी
नौ माह तक कोख में रखती,
हर पीड़ा को वो है सहती
सुनने को व्याकुल वो रहती,
अपने बच्चे की किलकारी।

सर्दी-गर्मी या हो बरसात,
हर मौसम में लुटाती प्यार
कभी न कम होने देती,
अपनी ममता का एहसास
खुद भूखी रहती पर वो,
आँचल से दूध पिलाती है
और अपने बच्चे का,
पेट भर देती है।

बलिदानों की वो है जननी,
जब भी आए कोई विपत्ति
बन जाती तब वो चण्डी,
कभी नहीं वो पीछे हटती
चाहे घर हो या रणभूमि
पर बच्चों पर कभी भी,
कोई आँच न आने देती।

माँ तेरे रूप अनेक,
कभी सरस्वती-कभी लक्ष्मी
माँ देती शिक्षा और संस्कार,
तभी बच्चों का होता बेड़ा पार
ढाल बनकर खड़ी वो रहती,
हर हाल में बच्चों के साथ
तभी तो बच्चों को,
मिलती जाती कामयाबी।

सदा ही लुटाती बच्चों पर,
अपनी ममता-स्नेह-प्यार
माँ तेरी लीला है अपरम्पार,
जिसको समझ न सका संसार
इसलिए तो कोई उतार,
न सका माँ का कर्ज।
तभी तो जगत जननी,
माँ ही कहलाती है॥

परिचय– संजय जैन बीना (जिला सागर, मध्यप्रदेश) के रहने वाले हैं। वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। आपकी जन्म तारीख १९ नवम्बर १९६५ और जन्मस्थल भी बीना ही है। करीब २५ साल से बम्बई में निजी संस्थान में व्यवसायिक प्रबंधक के पद पर कार्यरत हैं। आपकी शिक्षा वाणिज्य में स्नातकोत्तर के साथ ही निर्यात प्रबंधन की भी शैक्षणिक योग्यता है। संजय जैन को बचपन से ही लिखना-पढ़ने का बहुत शौक था,इसलिए लेखन में सक्रिय हैं। आपकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। अपनी लेखनी का कमाल कई मंचों पर भी दिखाने के करण कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इनको सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के एक प्रसिद्ध अखबार में ब्लॉग भी लिखते हैं। लिखने के शौक के कारण आप सामाजिक गतिविधियों और संस्थाओं में भी हमेशा सक्रिय हैं। लिखने का उद्देश्य मन का शौक और हिंदी को प्रचारित करना है।

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