कुल पृष्ठ दर्शन : 229

You are currently viewing जहाँ प्यार है, वहीं तो जीवन

जहाँ प्यार है, वहीं तो जीवन

डाॅ. मधुकर राव लारोकर ‘मधुर’ 
नागपुर(महाराष्ट्र)

*************************************************************************

कहते हैं ना कि मनुष्य जब जन्म लेता है,तो उसके शरीर में दिल भी होता है और दिल में प्रभु ने प्यार का विशालतम भंडार तोहफे में दिया है। समुद्र की तरह,जो कभी रिक्त नहीं होता।
एक सर्वेक्षण के अनुसार,मनुष्य पूरे जीवन अपने प्यार का उपयोग,आधा भी नहीं कर पाता। दूसरे शब्दों में प्रभु ने प्यार का विशालतम भंडार दिया है कि चाहे जितनी मर्जी हो प्यार करो और बांटो,परन्तु हम प्यार करने,जताने,महसूस करने में पीछे रह जाते हैं। आलम यह है कि हम पत्नी को भी यह कहने में संकोच करते हैं कि “मैं तुमसे प्यार करता हूँ।”
हम लोक-लाज के भय से,समाज के भय से, अपने बच्चों को भी यह नहीं कह पाते। क्यों भई, प्यार का इजहार करने में किस बात का डर है ?जीवन में प्यार करना,प्यार पाना अपराध कबसे हो गया है ? दरअसल,हमने स्वयं को एक अनावश्यक बंधन में कैद कर लिया है।
एक किस्सा कि-एक व्यक्ति मृत्यु के पश्चात, यमराज जी के पास अपने जीवन का लेखा-जोखा करने पहुंचा। यमराज जी ने उस व्यक्ति से पूछा- “धरती पर जन्म से लेकर मृत्यु तक तुमने क्या-क्या किया,बताओ ?”
उन महाशय ने अपने कार्य गिनवा दिए। यमराज जी उनके जवाब से संतुष्ट नहीं हो पाए। यमराज जी ने कहा-“तुमने धरती पर जीते-जी सभी कुछ किया, बस प्यार नहीं किया। हम तुम्हें इसकी सजा देते हैं और तुम्हें फिर से धरती पर भेज रहे हैं।”
दैनंदिनी जीवन में हम अगर प्यार को कर्म के साथ मिश्रण कर दें जैसे कि दूध में पानी,तो हमें कोई भी कार्य नीरस या रसहीन नहीं लगेगा,बल्कि सानंद वह कार्य हम सम्पादित कर सकेंगे।
इसलिए परमेश्वर भी कहते हैं कि प्यार को बांटते चलो,प्यार कभी कम ना होगा। इससे तुम्हारा जीवन भी सुखमय होता चला जाएगा। बड़ी बात तो यह है कि प्यार तो सभी करते हैं,परंतु इजहार कम लोग कर पाते हैं। जो ऐसा कर पाते हैं,वे धरती में ही स्वर्ग का सुख प्राप्त करते रहते हैं।
सहृदय लोगों को लोग पसंद करते हैं,उनके आपस में संबंध प्रगाढ़ होते हैं,ऐसे व्यक्ति के सभी मित्र होते हैं और शत्रु कोई भी नहीं।
जहाँ प्यार है वहीं तो जीवन है,और जहाँ जीवन है,वहीं परमेश्वर का निवास है। बड़ी बात यह है कि जो प्यार करते हैं और इजहार भी करते हैं,सिर्फ वे ही तो जिंदा होते हैं।
बुल्ले शाह भी कह गए हैं-“बेशक मंदिर,मस्जिद तोड़ो,पर प्यार भरा दिल ना तोड़ो,क्योंकि वहां दिलबर (खुदा) रहता है।”

परिचय-डाॅ. मधुकर राव लारोकर का साहित्यिक उपनाम-मधुर है। जन्म तारीख़ १२ जुलाई १९५४ एवं स्थान-दुर्ग (छत्तीसगढ़) है। आपका स्थायी व वर्तमान निवास नागपुर (महाराष्ट्र)है। हिन्दी,अंग्रेजी,मराठी सहित उर्दू भाषा का ज्ञान रखने वाले डाॅ. लारोकर का कार्यक्षेत्र बैंक(वरिष्ठ प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त)रहा है। सामाजिक गतिविधि में आप लेखक और पत्रकार संगठन दिल्ली की बेंगलोर इकाई में उपाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-पद्य है। प्रकाशन के तहत आपके खाते में ‘पसीने की महक’ (काव्य संग्रह -१९९८) सहित ‘भारत के कलमकार’ (साझा काव्य संग्रह) एवं ‘काव्य चेतना’ (साझा काव्य संग्रह) है। विविध पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी को स्थान मिला है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में मुंबई से लिटरेरी कर्नल(२०१९) है। ब्लॉग पर भी सक्रियता दिखाने वाले ‘मधुर’ की विशेष उपलब्धि-१९७५ में माउंट एवरेस्ट पर आरोहण(मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व) है। लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी की साहित्य सेवा है। पसंदीदा लेखक-मुंशी प्रेमचंद है। इनके लिए प्रेरणापुंज-विदर्भ हिन्दी साहित्य सम्मेलन(नागपुर)और साहित्य संगम, (बेंगलोर)है। एम.ए. (हिन्दी साहित्य), बी. एड.,आयुर्वेद रत्न और एल.एल.बी. शिक्षित डाॅ. मधुकर राव की विशेषज्ञता-हिन्दी निबंध की है। अखिल भारतीय स्तर पर अनेक पुरस्कार। देश और हिन्दी भाषा के प्रति विचार-
“हिन्दी है काश्मीर से कन्याकुमारी,
तक कामकाज की भाषा।
धड़कन है भारतीयों की हिन्दी,
कब बनेगी संविधान की राष्ट्रभाषा॥”

Leave a Reply