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उच्च विचारों का अवमूल्यन रोकना होगा

अल्पा मेहता ‘एक एहसास’
राजकोट (गुजरात)
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आज तक हमने सुना है,पढ़ा है,या कहा है कि-रुपए में गिरावट आई,डॉलर-यूरो की कीमत बढ़ गई है, दिरम के भाव बढ़ गए हैं। जिस देश की जो भी मुद्रा है,उसके साथ हम अपने रुपए को जोड़ते हैं,तुलना करते हैं एवं अपने रुपए का मूल्यांकन करते हैं।
१९४७ में भारत की आजादी के बाद से भारतीय रुपए का अवमूल्यन हुआ है। तब विनिमय दर १ यूएसडी=१ आईएनआर था,लेकिन आज १ अमेरिकी डॉलर खरीदने के लिए ७४ रुपए खर्च करने पड़ते हैं। मुद्रा के इस अवमूल्यन का अर्थ ‘घरेलू मुद्रा के बाह्य मूल्य में कमी होना,जबकि आंतरिक मूल्य का स्थिर रहना’ है।
मुद्रा के अवमूल्यन का अर्थ तो हमने जान लिया, अब हम रुपए के स्थान पर अपने विचारों को रखकर मूल्यांकन करते हैं तो अर्थ बिलकुल विपरीत निकलता है। स्वविचार का स्वदेश में ही अवमूल्यन,स्वदेश में ही खुद के विचारों में गिरावट..! जी हाँ,बात थोड़ी समझने में आसान है, पर स्वीकार्य में कठिन है। जिस तरह हम रुपए को बार-बार तोलते हैं,उसकी दूसरे देश के साथ तुलना करके मूल्यांकन करते हैं,ठीक उसी तरह हम अपनी सोच-विचारों को तराजू में तोलें तो स्वार्थ,पक्षपात, कुटिल नीति,भ्रष्टाचार,राजनीति,पाखंड,अविवेकता
का पलड़ा भारी हुआ है। नैतिक आचरण में भारी गिरावट आई है,लोगों के परस्पर व्यवहार,परस्पर फ़र्ज,परस्पर परोपकारी भावनाओं का संक्षेप हो गया है। आज देश को जितनी रुपए की अनिवार्यता है,उतनी ही उच्चतम नैतिक विचारों की भी है। आखिर विचारों से ही तो देश को प्रधान्यता मिलती है। हमारे देश की शांति,सभ्यता,स्वास्थ्य,सहकार भावनाओं का आदान-प्रदान,सहकार्य रचना,और हाँ…संस्कार..! सर्व गुणधर्म हमारे विचारों की उपज है। विचारों की उपज से ही देश में अच्छे या बुरे कर्म स्थापित होते हैं। देश में इतने अपराध क्यों हो रहे हैं, चोरी,लूटपाट,दुष्कर्म,डकैती,खून क्यों हो रहे हैं। अख़बार में रोज एक नई खबर होती है-दुष्कर्म हुआ ,हत्या हुई…देश के हर कोने में ये अपराध क्यों हो रहे हैं…?बेशक़ इसका एक ही कारण है-उच्चतम विचारों का अवमूल्यन,संस्कारों का अवमूल्यन, नैतिकता का अवमूल्यन,नि:स्वार्थ भावनाओं का अवमूल्यन,परोपकारी सोच का अवमूल्यन एवं दया,करुणा,संवेदनशीलता का अवमूल्यन,मानवता का अवमूल्यन। जिस देश का आधार स्तंभ ही इतना खोखला हो,जिसकी नींव ही पूरी खोखली हो गई हो,वहां का रुपया तो गिरेगा ही। हम अपने देश की बेटी-बहू का अगर रक्षण नहीं कर पाते हैं,उसकी गरिमा का मान नहीं रख पाते हैं तो हममें ये
कुशलता ही नहीं-ये हक़ ही नहीं कि,हम लक्ष्मी को प्राप्त करें,क्योंकि हक़ तभी होता है जब हम उनके प्रति हमारी नैतिक,नि:स्वार्थ फ़र्ज निभाएं। हक़ जताने से पहले कुशलता प्राप्त होनी जरुरी है। मानव इतना स्वार्थी हो गया है कि,रुपए को खींच रहा है जबकि,नैतिक मूल्य खुद से वंचित हो रहे हैं, लेकिन उसका रत्तीभर भी अफ़सोस नहीं है-
‘लिखें कोरे कागज़ पे कहीं हिसाब बेहिसाब,
घाटे में रहा हर बखत मेरा हिसाब
खन-खन रुपया खनकता गया,
आचरण में सदा रणकता गया
छूटे हाथों से कहीं हाथ,
सम्बन्धों से बिछड़ा मेरा साथ
रुपया गिनते-गिनते हाथ रुका ही नहीं,
पीछे मुड़ के अपनों को रोका ही नहीं
अन्तः में सब वीरान हुआ,
साँसों का भी विराम हुआ।
खनकते रहे गए सिक्के,
टकरा के खुद से ही सन्नाटे में शोर बड़ा कर्कश॥’

परिचय-अल्पा मेहता का जन्म स्थल राजकोट (गुजरात)है। वर्तमान में राजकोट में ही बसेरा है। इनकी शिक्षा बी.कॉम. है। लेखन में ‘एक एहसास’ उपनाम से पहचान रखने वाली श्रीमती मेहता की लेखन प्रवृत्ति काव्य,वार्ता व आलेख है। आपकी किताब अल्पा ‘एहसास’ प्रकाशित हो चुकी है,तो कई रचना दैनिक अख़बार एवं पत्रिकाओं सहित अंतरजाल पर भी हैं। वर्ल्ड बुक ऑफ़ टेलेंट रिकॉर्ड सहित मोस्ट संवेदनशील कवियित्री,गोल्ड स्टार बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड एवं इंडि जीनियस वर्ल्ड रिकॉर्ड आदि सम्मान आपकी उपलब्धि हैं। आपको गायन का शौक है।

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