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डर के आगे जीत

सुरेश चन्द्र ‘सर्वहारा’
कोटा(राजस्थान)
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एक दिवस मैं नदी किनारे
बैठ पेड़ की छाॅंव तले,
एक अकेला सुस्ताता था
धुँधलाई-सी शाम ढले।
देख रहा था ढलता सूरज
अपने में खोया-खोया,
सोच रहा था अब तक दुःख ही
जीवन में मैंने ढोया।
घोर निराशा में डूबा था
हो उदास अच्छा-खासा,
कुत्ता एक तभी दिखा जो
लगता था बेहद प्यासा।
कहीं दूर से आया था वह
नदिया का पीने पानी,
हाँफ रहा था यथाशीघ्र ही
उसको थी प्यास बुझानी।
पर पानी में जब झाँका तो
दिख पड़ी खुद की छाया,
समझा उसने पानी पीने
यहाँ अन्य कुत्ता आया।
डर के मारे दूर हो गया
देख स्वयं की परछाई,
प्यास बुझाना दूर यहाँ तो
प्राणों पर आफत आई।
किन्तु अन्त में अपने डर पर
शीघ्र विजय उसने पाई,
कूद पड़ा वह झट पानी में
और हट गई वह झाँई।
मिली सफलता थी कुत्ते को
साहस से जब काम लिया,
डर-डर कर जीने वालों ने
सचमुच जीवन कहाँ जिया।
मुस्काती है जीत सदा ही
खड़ी हुई डर के आगे,
लेकिन उन्हें नहीं मिलती है
जो डर से डरकर भागे।
एक छलांग लगा दें हम भी
दूर सभी होगी बाधा,
काम लिया जिसने हिम्मत से
लक्ष्य उसी ने है साधा।
चला गया था वह कुत्ता तो
मुझको जीवन-सूत्र थमा,
छाँट गया चिन्ता का कुहरा
जो मेरे मन रहा जमाll

परिचय-सुरेश चन्द्र का लेखन में नाम `सर्वहारा` हैl जन्म २२ फरवरी १९६१ में उदयपुर(राजस्थान)में हुआ हैl आपकी शिक्षा-एम.ए.(संस्कृत एवं हिन्दी)हैl प्रकाशित कृतियों में-नागफनी,मन फिर हुआ उदास,मिट्टी से कटे लोग सहित पत्ता भर छाँव और पतझर के प्रतिबिम्ब(सभी काव्य संकलन)आदि ११ हैं। ऐसे ही-बाल गीत सुधा,बाल गीत पीयूष तथा बाल गीत सुमन आदि ७ बाल कविता संग्रह भी हैंl आप रेलवे से स्वैच्छिक सेवानिवृत्त अनुभाग अधिकारी होकर स्वतंत्र लेखन में हैं। आपका बसेरा कोटा(राजस्थान)में हैl

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