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नारी है जग जननी है लक्ष्मी

एन.एल.एम. त्रिपाठी ‘पीताम्बर’ 
गोरखपुर(उत्तर प्रदेश)

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नारी है जग जननी है लक्ष्मी,
जन-जन जीवन की संगिनी।
बहना है भाई की ताकत,
इज़्ज़त का गहना है।
ब्रह्माण्ड निर्माण की आधार,
बिन नारी मिथ्या कल्पना संसार॥

नारी नित्य निरंतर प्रवाह से नश्वर संसार,
गर नारी नहीं तो सिर्फ स्वर संसार।
नारी जग की साहस,शक्ति,त्याग-तपस्या,
बलिदान की दुनिया में चिराग,मशाल।
बेटी है नाज़ों की,संस्कृति है संस्कारों की,
वीरों की बहना हैं।
जननी है जाबांजों की,
गार्गी,विद्योत्तमा,अनसुईया,सीता-सावित्री, इंदिरा,कल्पना,दुर्गा,झांसी की लक्ष्मी बाई है॥

मेहनतकश मजदूर दूधमुँहे बच्चे को,
पीठ पर बांधे तोड़ती पत्थर…
या बाबूजी,सेठ महाजन की मजदूरी कर परिवार समाज का करती पोषण।
लाखों रोज जलालत सहती,
बेशर्मी के तानों के घावों से घायल..
उफ़ तक नहीं करती॥

तन पर फ़टे,मैले और कुचैले कपड़े,
दिनभर मेहनत के पसीने की बूंदें
तन पे रगों में दौड़ती लहू जैसी।
नारी न्यारी,कभी ना हारी,
हिम्मत हस्ती का हाल बयां करते॥

पति कैसा हो परमेश्वर जैसा नशेड़ी, भंगेड़ी,शराबी,कबाबी,अय्याश
सुहाग का देवता,जीवन का,
अभिमान-स्वाभिमान।
पति से आशाएं टूटी तो बेटा,
अरमां-उम्मीदों का जमी आसमां।
नारी कभी हार ना माने,
चाहे जितने भी हो अत्याचार…
लड़ती,कभी कमजोर नहीं,
अबला नहीं,नहीं अन्याय स्वीकार॥

नादां,नाज़ुक,कमसिन,
भोली प्रेम की भाषा परिभाषा।
कमसिन कली नाजों की,
बाग़-बागबां के बाग़ का चहकती-महकती फूल।
घृणा,द्वेष-दम्भ,तिरस्कार की आग,
आगार,विष की हाला प्याला,काल कराला।
इज़्ज़त-स्वाभिमान पर मर मिटने का जज्बा,
जज्बात,नारी,औरत,औकात॥

खेतों की हरियाली की खातिर गाँव की कर्मयौद्धा किसान,
देश की सीमाओं की रक्षा में हुंकार की दहाड़ भरती जवान।
सत्यमेव जयते,कर्ममेव जयते,श्रममेव जयते,जय मजदूर,जय जवान-जय किसान-जय नौजवान की आस्था,
हस्ती-मस्ती की आवाज़ पहचान॥

बचपन,किशोर,प्रौढ़,वृद्ध,अधेड़ उम्र का कोई भी हो पड़ाव,
मकसद की मर्यादा पर जीना-मरना।
मर मिट जाना,
नारी जीवन का संकल्प सत्य जीवन सार।
कुनबे,परिवार,रिश्ते-नातों में पैदा होती, बनते और बिगड़ते रिश्तों,परिवार-समाज,
हालात संबंधों के प्यार परवरिश में जीवन देती वार॥

हाथ में झाड़ू,सूखी आँखें,झुकी कमर,
पर हाथ नारी का जीवन-दर्शन दुनिया में साक्षात…
चाहे समाज,संबंध,परिवार,रिश्ते-नाते, राजा-महाराजा हो या गरीब दुखी।
नारी को ढोती,
मैला करती अमीरी-गरीबी की गन्दगी ही जीवनभर साफ़॥

अतिशय धन दौलत की गर्मी या,
गरीबी के पसीने की गन्दगी कभी पतित पावनी गंगा।
कभी वैतरणी की गाय,अर्ध नारीश्वर-सी धरणी जगत संसार,
पृथ्वी,वसुंधरा,धरा दूषित,प्रदूषित,
कचरे को स्वच्छ करती दे रही दुनिया को सन्देश।
मैं बूढ़ी औरत अपनी क्षमता में कर रही प्रयास,
स्वच्छ अवनी हो,स्वच्छ हो अम्बर-आकाश।
स्वच्छ,स्वस्थ हो बच्चे स्वस्थ,स्वच्छ हो राष्ट्र समाज,
ना कोइ बीमारी हो,घर-घर में खुशहाली हो।
आने वाली नस्लें सुखी स्वस्थ हों,
हम पर करें अभिमान॥

परिचय–एन.एल.एम. त्रिपाठी का पूरा नाम नंदलाल मणी त्रिपाठी एवं साहित्यिक उपनाम पीताम्बर है। इनकी जन्मतिथि १० जनवरी १९६२ एवं जन्म स्थान-गोरखपुर है। आपका वर्तमान और स्थाई निवास गोरखपुर(उत्तर प्रदेश) में ही है। हिंदी,संस्कृत,अंग्रेजी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री त्रिपाठी की पूर्ण शिक्षा-परास्नातक हैl कार्यक्षेत्र-प्राचार्य(सरकारी बीमा प्रशिक्षण संस्थान) है। सामाजिक गतिविधि के निमित्त युवा संवर्धन,बेटी बचाओ आंदोलन,महिला सशक्तिकरण विकलांग और अक्षम लोगों के लिए प्रभावी परिणाम परक सहयोग करते हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,गीत,ग़ज़ल,नाटक,उपन्यास और कहानी है। प्रकाशन में आपके खाते में-अधूरा इंसान (उपन्यास),उड़ान का पक्षी,रिश्ते जीवन के(काव्य संग्रह)है तो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में भी रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। ब्लॉग पर भी लिखते हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-भारतीय धर्म दर्शन अध्ययन है। लेखनी का उद्देश्य-समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त करना है। लेखन में प्रेरणा पुंज-पूज्य माता-पिता,दादा और पूज्य डॉ. हरिवंशराय बच्चन हैं। विशेषज्ञता-सभी विषयों में स्नातकोत्तर तक शिक्षा दे सकने की क्षमता है।
अनपढ़ औरत पढ़ ना सकी फिर भी,
दुनिया में जो कर सकती सब-कुछ।
जीवन के सत्य-सार्थकता की खातिर जीवन भर करती बहुत कुछ,
पर्यावरण स्वच्छ हो,प्रदूषण मुक्त हो जीवन अनमोल हो।
संकल्प यही लिए जीवन का,
हड्डियों की ताकत से लम्हा-लम्हा चल रही हूँ।
मेरी बूढ़ी हड्डियां चिल्ला-चीख कर्,
जहाँ में गूँज-अनुगूँज पैदा करने की कोशिश है कर रही,
बेटी पढ़ाओ,बेटी बचाओ,स्वच्छ राष्ट्र, समाज,
सुखी मजबूत राष्ट्र,समाज॥

 

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