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सर्वदा पूज्य है ‘औरत’

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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कभी था औरत होने का अर्थ-
दबी हुई रहना,
मार खाना
गालियां सुनना,
जिंदगी का जहर
हँस कर के पीना।
कभी था औरत होने का अर्थ-
गधे की तरह काम करना,
कभी नहीं आराम करना
दर्जन भर बच्चे पैदा करना,
खुद भूख सह कर
उन सबका पेट भरना,
पति के नाज उठाना
शराबी पति के जूते खाना,
किसी कोने में बैठ कर
आँसू बहाना।
कभी था औरत होने का अर्थ-
परिवार का खाना बनाना,
कुंए से पानी भर लाना
जल्दी उठकर चक्की चलाना,
बच्चे खिलाना
रोना और सो जानाl

आज औरत होने का अर्थ है-
मर्द के बराबर कमाना,
घर चलाने में साथ निभाना
अब किसी से नहीं डरती है,
क्योंकि बराबर काम करती हैl
आज़ औरत होने का अर्थ है-
फौज में आयुध चलाना,
विमान और ट्रैन चलाना
रैहड़ी भी चलाती है,
ट्रक भी चलाती है
स्पूतनिक में उड़ती है,
सरकार भी चलाती है।
आज औरत होने का अर्थ है-
पढ़ना-लिखना,संस्कारित होना,
दो-दो घरों का बोझ उठाती है
वक्त पड़ने पर,
चण्डी भी बन जाती है।
आज बहुत सक्षम है औरत,
ये आज की औरत है
जो देश की प्रगति में सहायक है।
अबला नहीं है आज औरत,
कर्मठता की मूरत है औरत
सहनशील भी है तो,
वक्त पर महाकाली भी है औरतl
औरत सृष्टि का उद्गम है,
औरत सर्वदा पूज्य है

ये है औरत होने का अर्थll

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।

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