कुल पृष्ठ दर्शन : 292

You are currently viewing किस्मत का फसाना

किस्मत का फसाना

आशीष प्रेम ‘शंकर’
मधुबनी(बिहार)
**************************************************************************
जीवन की तड़-तड़ से हमने तराना सीख लिया,
जैसे तड़ाग ने असालतन ही अणु जमाना सीख लियाl

मैं सोच बैठा,कुछ न हो पाएगा अब,
इतने में ही किसी बेजुबां से हमने नवल गढ़ाना सीख लिया।

जैसे तरुवर ने स्वतः ही तड़ित से बचना सीख लिया,
वैसे हमने भी आत्महित विकट को हराना सीख लियाl

वो तरु थे,बहुत-सी घोर सहा जिसने,
हम भी कम न थे,उसी से हमने जख्म छुपाना सीख लिया।

कि खुद पे रख भरोसा,यूँ न किसी से उम्मीद कर,
इस कदर उसी से जिन्दगी का एक नया अफसाना सीख लिया।

तर गये वो जो नम हुआ करते थे,
निखर गए वो जो खुद से लड़ा करते थेl

मेरे मुकद्दर ने मेरे भाग्य में कुछ न लिखा तो क्या,
वो तो मुझे ही मौका दे गया,और हमने भी खुद को आजमाना सीख लियाll
(इक दृष्टि यहाँ भी:तड़ाग=तालाब, असालतन=स्वयं,घोर=संकट,अधिक पीड़ा)

परिचय-आशीष कुमार पाण्डेय का साहित्यिक उपनाम ‘आशीष प्रेम शंकर’ है। यह पण्डौल(मधुबनी,बिहार)में १९९८ में २२ फरवरी को जन्में हैं,तथा वर्तमान और स्थाई निवास पण्डौल ही है। इनको हिन्दी, मैथिली और उर्दू भाषा का ज्ञान है। बिहार से रिश्ता रखने वाले आशीष पाण्डेय ने बी.-एससी. की शिक्षा हासिल की है। फिलहाल कार्यक्षेत्र-पढ़ाई है। आप सामाजिक गतिविधि में सक्रिय हैं। लेखन विधा-काव्य है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में केसरी सिंह बारहठ सम्मान,साहित्य साधक सम्मान,मीन साहित्यिक सम्मान और मिथिलाक्षर प्रवीण सम्मान हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जागरूक होना और लोगों को भी करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-रामधारी सिंह ‘दिनकर’ एवं प्रेरणापुंज-पूर्वज विद्यापति हैं। इनकी विशेषज्ञता-संगीत एवं रचनात्मकता है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिन्दी हमारी भाषा है,और इसके लिए हमारे पूर्वजों ने क्या कुछ नहीं किया है,लेकिन वर्तमान में इसकी स्थिति खराब होती जा रही है। लोग इसे प्रयोग करने में स्वयं को अपमानित अनुभव करते हैं,पर हमें इसके प्रति फिर से और प्रेम जगाना है,क्योंकि ये हमारी सांस्कृतिक विरासत है। इसे इतना तुच्छ न समझा जाए।

Leave a Reply