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धवल चाँदनी

डॉ. कुमारी कुन्दन
पटना(बिहार)
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पहला-पहला प्यार मेरा,
मैं कैसे भला बिसराऊँ
धवल चाँदनी बिखरी हुई है,
मन को कैसे धीर बंधाऊँ ?

कहीं तान उठी विरहा की,
हृदय में उठी चिंगारी
कहीं सिमटी पिया संग गोरी,
बाँहों में सपने देखे न्यारी।

बढ़ गई है उर की उलझन,
बता कैसे मैं इसे सुलझाऊँ
स्याह भरी मंजिल है अपनी,
अब तू ही बता कहां जाऊँ ?

तन कहीं और मन कहीं,
चाँद बिना चातकी बेचैन
कैसे इश्क छुपाऊँ दिल में,
अश्क ठहरते नहीं मेरे नैन।

ले जा अपनी यादें ले जा,
ले जा सुखद वो एहसास
प्रीत की अपनी बातें ले जा,
कुछ ना चाहूँ अपने पास।

पर सोंच जरा ये सारे दे दूँ,
तो जियूँ मैं किसके सहारे।
प्रीत की डोरी ऐसी उलझी,
मुझसे रूठ गए सुख सारे॥

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