अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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मन बड़ा उदास था,
कि मिल गया बड़े दिन बाद अचानक काम
बहाया खूब पसीना,
कमाए कुछ रुपए
और पहुँचा घर
देख बिटिया की सूरत,
हुई तबियत हरी
बेटी को दी रोटी-साग,
खुश थी आज तो वो खूब
कल का पता नहीं…
पसीना आए कि, रोटी या फिर…
पिता! और शायद खाली हाथ!
क्या यही है व्यवस्थाओं का लोक-समाज!!