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लघुकथा में अनावश्यक विस्तार से बचना चाहिए-डॉ. मिश्रा

पटना (बिहार)।

लघुकथाकार लघुकथा लिखने में जल्दी बाज़ी न करें। लघुकथा में चरित्र चित्रण और विवरण से बचें और कम शब्दों में अधिक कहना, मतलब ‘देखन में छोटन लगे घाव करे गंभीर’ वाली बात होनी चाहिए।
अध्यक्षीय टिप्पणी में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अनिता मिश्रा ‘सिद्धि’ ने यह बात कही । अवसर रहा भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में आभासी माध्यम से आयोजित लघुकथा सम्मेलन का। संचालन करते हुए संयोजक सिद्धेश्वर ने कहा कि, व्यंग्य शैली में लिखी गई एक लघुकथा है समाजसेवा। लघुकथा में व्यंग्य मिश्रित करने के क्रम में डॉ. जसवीर चावला एक प्रयोगधर्मी लघुकथाकार के रूप में दिख पड़ते हैं। आपने कहा कि, हर लेखन के पीछे अपना एक अलग उद्देश्य होता है। किसी भी लेखक को बिना उद्देश्य अपनी रचनाओं का सृजन नहीं करना चाहिए।
मुख्य अतिथि साहित्यकार डॉ. जसबीर चावला ने अपनी १२ लघुकथाओं का पाठ कर प्रबुद्ध श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। गोष्ठी के आरंभ में उन्होंने कहा कि, लघुकथा कम-से-कम शब्दों में जीवन और समाज का तीखा सच उद्घाटित करती हुई मानवीय संवेदना को झकझोर कर हमें अंतर्मंथन को विवश करती है।
सम्मेलन में डॉ. मिश्रा ने भी २ लघुकथा का वाचन किया।

साहित्यकार सिद्धेश्वर की नि:स्वार्थ साहित्य सेवा के लिए मंच पर मौजूद सभी लोगों ने आभार व्यक्त किया। संगोष्ठी के दूसरे सत्र में १२ लघुकथाकार अपनी कथाओं के साथ उपस्थित रहे। इसमें सपना चन्द्रा की ‘सेवा सम्मान’ ने आज के साहित्य के बाजारीकरण पर करारा प्रहार किया, वहीं पूनम कतरियार तथा राज प्रिया रानी की ‘और रावण मर गया’ लघुकथा हृदय को छू गई। नरेन्द्र कौर छाबड़ा, परिषद के उप-निदेशक डॉ. अनुज प्रभात, गार्गी रॉय, पूनम श्रेयसी और नोरिन शर्मा की उपस्थिति भी महत्वपूर्ण रही। आयोजन में सिद्धेश्वर की लघुकथा ‘उपहार’ भी प्रभाव छोड़ने में कामयाब रही। इसके पश्चात सिद्धेश्वर एवं डॉ. मिश्रा ने लघुकथा लेखन की बारीकियों को विस्तार से समझाया। संस्था की सचिव ऋचा वर्मा ने धन्यवाद ज्ञापन दिया।