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आत्म-अवलोकन की आवश्यकता

डॉ. चंद्रा सायता
इंदौर (मध्यप्रदेश )
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स्वतंत्र देश और हमारी जिम्मेदारियाँ….

क्या हम जानते हैं कि, मुख्य शीर्षक से ही २ प्रकार के प्रश्न हमारे सामने आते हैं, पहला है स्वतंत्र राष्ट्र क्या होता है ?, दूसरा हमारी जिम्मेदारियाँ क्या हैं ?
भारत १५ अगस्त १९४७ को स्वतंत्र हुआ था, किन्तु वास्तविक रूप से उसे असली स्वतंत्रता का जामा २६ जनवरी १९५० को पहनाया गया, जब वह गणतांत्रिक देश बना, उसका अपना निशान ध्वज तिरंगा बना।
अन्य कई विवादित मुद्दों को छोड़कर यदि हम अपनी स्वतंत्रता के बारे में बात करें, तो मुख्यतः इसमें राष्ट्र की स्वतंत्रता बड़ी है, तभी उससे जुड़ा प्रश्न है ‘हमारी स्वतंत्रता’ क्या है ?
ध्यान रहे कि, व्यक्तिगत और राष्ट्रीय स्वतंत्रता का परस्पर सापेक्ष तथा निरपेक्ष दोनों तरह के संबंध हैं।
मेरी समझ से स्वतंत्रता वर्ष से लेकर आज तक नई-नई आने वाली कई पीढ़ियों को इस बात का ज्ञान ही नहीं रहा और ना किसी घर में, ना विद्यालय में प्रशिक्षण दिया गया कि, स्वतंत्रता क्या है और इसकी सीमा क्या है ? संभवतः ये पीढ़ियाँ इतना भर जानती हैं कि, उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता और उसकी सीमा क्या है ? अर्थात वे जो चाहें कर सकते हैं व सीमा असीम। अन्य शब्दों में कहा जाए, तो ऐसी स्वतंत्रता को मनमौजीपन की संज्ञा दी जा सकती है। इसकी सीमा मर्जी हो तब तक।
स्वतंत्रता की दुहाई देने वाली युवा पीढ़ी ‘स्वतंत्रता’ शब्द को सामान्य अर्थ में लेकर इसका दुरूपयोग करती रही हैं। यह स्वतंत्रता का दुरूपयोग करते हुए देश में अराजकता का माहौल फैला रही हैं।
सच तो यह है कि, हर समय स्वतंत्र राष्ट्र का बोझ उसकी तत्कालीन युवा पीढ़ी के मजबूत कंधों पर रहता है।
व्यक्तिगत स्वतंत्रता अवश्य मर्यादित और सीमित होनी चाहिए, तभी ना हमारी जिम्मेदारियाँ तय हो पाएंगी और उन्हें पूरी-पूरी कर पाएंगे। इसे समझने के लिए एक सामान्य-सा दृष्टांत प्रस्तुत है-

कोई व्यक्ति जोर-जोर से ढोल बजाता है। उसकी सीमा से आशय होगा-क्या उसने निर्धारित संस्था से अनुमति प्राप्त कर ली है ? उसके लिए आवश्यक समय सीमा कितनी है ? और वहाँ के स्थान की संवेदनशीलता कैसी है ? यदि इन नियमों का पालन करके वह तदनुसार काम करता है, तो वह अपनी सवतंत्रता का सही उपयोग करता है। संभवत:, किसी क्षीणहृदय व्यक्ति पर इसका विपरीत प्रभाव पड़े और उसका निधन हो जाए या वह बेहोश हो जाए, तो ऐसे में इसकी जवाबदारी किस पर आएगी ? इससे तो यही अर्थ निकलता है कि, हम अपने किसी भी काम में स्वतंत्रता की मर्यादा रखें। मर्यादा होती है कि, हमारे किसी कृत्य से किसी अन्य को किसी प्रकार की क्षति न हो, उसके अधिकारों का हनन न हो, यही हमारी स्वतंत्रता की सीमा है। जब यह सीमा रखेंगे, तो हमारी जिम्मेदारियाँ अपने-आप ही पूरी हो जाएंगी। इस प्रकार बची हुई हमारी शेष शक्ति राष्ट्र के विकास के काम आएगी।