डॉ. सुभाष शर्मा
ऑस्ट्रेलिया
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जनभाषा में न्याय…
पटना उच्च न्यायालय के परिसर में हुई परिचर्चा से संबंधित समाचार पढ़कर मन में आशा की लहर जगी। जिस प्रदेश ने भारत को पहला राष्ट्रपति दिया और सपना दिया कि हिंदी राष्ट्रभाषा होनी चाहिए, उसी धरती से आज यह आवाज उठ रही हैं कि न्यायालयों की भाषा जनता की भाषा हो। बिहार सहित हिंदी भाषी राज्यों में न्याय हिंदी में मिले। क्या विडम्बना है कि वह न्यायाधीश और अधिवक्ता जिनकी मातृभाषा अंग्रेजी नहीं है, उनका मोह अंग्रेजी से इतना कि वे जनता की भाषा और भारत की राजभाषा की बलि दे रहे हैं, यह आश्चर्य की ही नहीं, शर्म की भी बात है।
नमन है अधिवक्ता इंद्रदेव प्रसाद को, जिनकी भरी अदालत में एक न्यायाधीश बेइज्जती इसलिए करता रहा, क्योंकि वे बेधड़क हिंदी में बहस करते रहे। अपने भविष्य की परवाह किए बिना अपनी मातृभाषा, याचिकाकर्ता की मातृभाषा तथा भारत संघ व बिहार राज्य की राजभाषा के लिए आन-बान-शान से उन न्यायाधीश पर भारी पड़े।
आज ज्यादातर कथित हिंदी-प्रेमी अपनी भाषा के लिए संघर्ष करना तो दूर, संघर्ष करनेवाले से भी दूरी बना कर रखते हैं, साथ देना तो बहुत दूर की बात है। वहीं साहसी हिंदी सेनानी इंद्रदेव जी ने हिंदी भाषा के लिए भरे न्यायालय में बेइज्जती सहकर भी हिंदी का मान बढ़ाया।
छोटे से छोटे देश का नागरिक अपनी भाषा बोलकर गौरवान्वित होता है। यह देखकर विदेश में रह कर मेरा हिंदी के प्रति प्रेम और प्रगाढ़ हुआ है। मातृभाषा और रोजी-रोटी की भाषा का अंतर तथा महत्व विदेश में रह कर अच्छी तरह समझ आता है। इंद्रदेव जी ने हिंदी प्रेमियों को झकझोर दिया है और पूरे देश को एक नई दिशा दी है।
हे पत्रकारों, अधिवक्ताओं, हिंदी के साहित्यकारों आज आप कहाँ छिपे हो ? चाटुकारिता और यश प्राप्ति की लालसा छोड़िए एवं आप भी हिम्मत कीजिए और अपने मान-अपमान को ताक पर रखिए। हिंदी में न्याय पाना किसी भी देशवासी की भाषा में मिलना उसका मौलिक अधिकार है तथा अधिवक्ताओं का मौलिक कर्तव्य।सबसे अनुरोध करता हूँ, कि आप सब लोग इंद्रदेव जी के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़े हों। आने वाली पीढ़ियाँ आपसे आपके हिंदी प्रेम का हिसाब मांगेंगी कि वह नकली था या असली। हिंदी को सम्मान दिलाने के लिए संघर्ष की आवश्यकता है। यदि आप हिंदी से प्रेम करते हैं और आत्मसम्मान में विश्वास रखते हैं, तब अंग्रेजी की गुलामी छोड़िए। हिंदी के सम्मान के लिए, हिंदी में न्याय के लिए अपना सब कुछ गंवा कर योद्धा की तरह खड़े निलंबित अधिवक्ता के साथ खड़े हों और उन्हें तथा जनता को जनता की भाषा में न्याय दिलवाने के लिए आगे बढ़ें।
(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुम्बई)