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अक्ल का अजीर्ण

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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‘आदिपुरूष’….

जैसे एक मन दूध में २५० ग्राम दही डाल देने से पूरा दूध फट जाता है, खीर को यदि हींग के बर्तन में रख दिया जाए तो उसका स्वाद ख़राब हो जाता है, उसी प्रकार फिल्म की कहानी में कुछ अंश गलत डल जाने से सब कुछ गड़बड़ हो जाता है। मुझे यह समझ में आ रहा है कि, ख्याति-यश बहुत होने से कभी कभी अहम भाव आ जाता है और यह कोई नई बात नहीं होती है।
लेखक और गीतकार मनोज ‘मुन्तशिर’ का एक कथन यह भी आया कि, “हनुमान भगवान नहीं थे, हमने बनाया है” जबकि, जैन धर्म हनुमान जी को भगवान मानता है, क्योंकि उन्होंने मोक्ष को प्राप्त किया था, किन्तु जैन धर्म यह कहता है कि, हनुमान भगवान साधारण इंसान की तरह थे। उनका न ही बन्दर जैसा मुँह था, न ही पूछ थी। वे अपने जीवन में साधु बन गए थे और उन्होंने मोक्ष को प्राप्त कर लिया था। भगवान श्री राम एवं उनके अनन्य भक्त श्री हनुमानजी भारतीय जन-जन के मन एवं श्वाँसों में रचे-बसे हैं, अतः रचनात्मकता के नाम पर यदि कोई भी व्यक्ति इनका मनमाना चरित्र चित्रण करता है, पात्रों के मुख से स्तरहीन संवादों का प्रेषण कराता है, तो यह न केवल उसकी धृष्टता है, अपितु भारतीय संस्कृति-परंपराओं पर भी कुठाराघात करता है, और उसका यह कृत्य अक्षम्य व घोर निंदनीय है।
मनोज ‘मुन्तशिर’ संभवतः ने अपने-आपको महर्षि वाल्मीकि एवं गोस्वामी तुलसीदास जी से भी बड़ा कवि, साहित्यकार एवं विद्वान समझने का भ्रम पाल लिया है। फिल्म ‘आदिपुरुष’ से मनोज ‘मुन्तशिर’ ने जनता के स्नेह एवं प्रेम का न केवल अनादर किया है, वरन् भावनाओं को भी आहत किया है। भारतीय जनमानस यदि मनोज ‘मुन्तशिर’ जैसों को उनकी श्रेष्ठ रचनाओं के लिए अपने सिर-माथे पर बिठा सकता है तो, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम एवं श्री हनुमानजी के अपमान के लिए उन्हें कचरे के ढेर में फेंक भी सकता है। समय रहते अपनी गलतियों को सुधार लें, अन्यथा सफलता को असफलताओं में बदलते देर नहीं लगती।
महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है कि, “जाके प्रिय न राम वैदेही, तजिये ताहि कोटि बैरी सम, जद्यपि परम सनेही।”

जैन धर्म में २४ कामदेव होते हैं। इनमें एक हनुमानजी हैं। जैन दर्शन के अनुसार चक्रवर्ती, नारायण, कामदेव और तीर्थंकर के माता-पिता ये सभी क्षत्रिय हुआ करते हैं। इनकी संख्या १६९ है, जो महापुरुष होते हैं। इन महापुरुषों में हनुमान जी का भी नाम है और कामदेव होने के नाते ये क्षत्रिय थे। मनोज ‘मुन्तशिर’ ने कहा कि, जैन दर्शन के अनुसार हनुमान पहले क्षत्रिय थे।मनोज जैसे लोग यह सोचने लगते हैं कि, उनके पास ही ज्ञान का खजाना है। “कुछ लोग जो ज्यादा जानते हैं, इंसान को कम पहचानते हैं” यह बात सही है। जब प्रतिष्ठा मिलने लगती है, तब घमंड आना निश्चित है, जो अवनति की ओर जाता है। ईश्वर उन्हें सद्बुद्धि दे और विकास को प्राप्त करें, पर समग्र चिंतन जरूरी है।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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