शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान)
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ईश्वर की संरचना देखो कितनी अद्भुत कितनी प्यारी।
कैसे-कैसे फूल खिलाये हर खुशबू है न्यारी न्यारी॥
सूरज-चाँद-सितारे, उसने खेल-खिलौने अज़ब बनाये,
है आश्चर्य शून्य से नभ में, इन सबको कैसे लटकाये।
पशु-पक्षी मानव निर्मित कर महका दी सारी फुलवारी,
कैसे-कैसे फूल…॥
झरनों की कल-कल से लगता, मधुर कहीं पर साज बज रहा,
तार कस रहे हैं वीणा के, सरगम स्वर आलाप सज रहा।
चहक खगों की है मनमोहक, भिन्न बोलियाँ लगती प्यारी,
कैसे-कैसे फूल…॥
फूलों पर भंवरों की गुँजन, और तितलियों का लहराना,
नैनों की है प्यास बढ़ाता, सारँग का नर्तन दिखलाना।
गैंदा और गुलाब चमेली महकाते हैं क्यारी- क्यारी,
कैसे कैसे फूल…॥
नदी बना कर नीर बहाया, कीचड़ में भी कमल खिलाया,
जीवन का उद्देश्य बताकर राह सही चलना सिखलाया।
उदर पूर्ति का साधन धरती माता हैं कितनी उपकारी।
कैसे-कैसे फूल…॥
हर प्राणी को तुमने भगवन् एक सजग मस्तिष्क दिया है,
लेकिन आज उसी मानव ने शैतानों सा काम किया है।
इक-दूजे का लहू बहाते त्रस्त हो रही धरती सारी,
कैसे-कैसे फूल खिलाए, हर खुशबू है न्यारी न्यारी…॥
परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है