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अधिकतम मतदान… एक क्रांतिकारी शुरूआत

ललित गर्ग

दिल्ली
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोकतंत्र के महाकुंभ चुनाव में पहली बार मतदाता बने युवाओं से कीर्तिमान संख्या में मतदान का आग्रह किया है। अधिकतम संख्या में मतदान लोकतंत्र की जीवंतता का प्रमाण होने के साथ लोकतंत्र के बलशाली होने का आधार है और जनता की सक्रिय भागीदारी का सूचक है। इस बार लोकसभा चुनाव में मतदाताओं की संख्या लगभग ९७ करोड़ है, इनमें बड़ी संख्या युवाओं की है। इसी लिए, श्री मोदी ने मतदान में युवाओं की सक्रिय भागीदारी का आह्वान करके जागरूक, सक्षम एवं जुझारु राजनेता का परिचय दिया है। अधिकतम मतदान भारतीय लोकतंत्र को अधिक स्वस्थ, सुदृढ़ एवं पारदर्शी बनाने की एक सार्थक मुहिम है। सभी मतदाताओं को मतदान के प्रति वैसा ही उत्साह दिखाना चाहिए, जैसा कुछ समय से महिलाएं दिखा रही हैं। प्रधानमंत्री ने युवाओं से यह भी अपील की कि वे राजनीतिक गतिविधियों का हिस्सा बनें और राजनीतिक-चर्चाओं को लेकर जागरूक भी रहें। विशेषतः विभिन्न राजनीतिक दलों की लोक-लुभावन घोषणाओं एवं चुनावी घोषणा-पत्रों पर गहराई से जानकारी हासिल करना चाहिए कि, इन घोषणाओं का आधार क्या है, इनके लिए धन कहां से आएगा ?

मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने इसी बात को उठाते हुए कहा है कि, यदि राजनीतिक दलों को अपने घोषणा-पत्रों में लोकलुभावन वादे करने का अधिकार है, तो मतदाताओं को यह जानने का हक भी है कि क्या वे वादे व्यावहारिक हैं और उन्हें लागू करने के लिए धन का प्रबंध कहां से किया जाएगा।
अधिकतम मतदान लोकतंत्र में जन-भागीदारी का अवसर मात्र ही नहीं हैं, बल्कि देश की दशा-दिशा तय करने में आम आदमी के योगदान का भी परिचायक है। अधिकतम मतदान के लिए माहौल बनाने की आवश्यकता इसलिए है, क्योंकि देश के कुछ हिस्सों में मतदान प्रतिशत अपेक्षा से कहीं कम होता है। विडम्बना  यह है कि, आमतौर पर कम प्रतिशत महानगरों में अधिक देखने को मिलता है। इसका कोई मतलब नहीं कि, सरकारों अथवा राजनीतिक दलों के तौर-तरीकों की आलोचना तो बढ़-चढ़कर की जाए, लेकिन मतदान में उदासीनता दिखाई जाए। आमतौर पर मतदान न करने के पीछे यह तर्क अधिक सुनने को मिलता है कि, मेरे अकेले के मत से क्या फर्क पड़ता है ? एक तो यह तर्क सही नहीं, क्योंकि कई बार २-४ मतों से भी हार-जीत होती है। दूसरे, अगर सभी यह सोचने लगें तो फिर लोकतंत्र कैसे सबल एवं सक्षम होगा ? इस दृष्टि से प्रधानमंत्री का अधिकतम मतदान को प्रोत्साहन देने का उपक्रम एवं आव्हान एक क्रांतिकारी शुरूआत कही जा सकती है। इसका स्वागत हम इस सोच और संकल्प के साथ करें कि, हमें मतदान से आगामी आम चुनाव में भ्रष्टाचार, राजनीतिक अपराधीकरण व विसंगतियों पर नियंत्रण करना है।
अधिकतम मतदान के संकल्प से हमें औसत प्रतिशत ५५ से ९०-९५ प्रतिशत तक ले जाना चाहिए, ताकि इस लक्ष्य को हासिल करके हम भारतीय राजनीति की तस्वीर को नया रूख दे सकें। मतदान करना हर नागरिक का मौलिक अधिकार है और कर्तव्य भी है, लेकिन विडम्बना है हमारे देश की कि, आजादी के ७७ वर्ष बाद भी नागरिक लोकतंत्र की मजबूती के लिए निष्क्रिय हैं। ऐसा लगता है जमीन आजाद हुई है, जमीर तो आज भी कहीं, किसी के पास गिरवी रखा हुआ है।   अनिवार्य मतदान के लिए  कानून लागू करना ही होगा और इस पहल के लिए सभी दलों को बाध्य होना ही होगा, क्योंकि भारतीय लोकतंत्र में यह नई जान फूंक सकता है। अब तक दुनिया के ३२ देशों में अनिवार्य मतदान की व्यवस्था है, लेकिन यही व्यवस्था अगर भारत में लागू हो गई तो उसकी बात ही कुछ और होगी और वह दुनिया के लिए अनुकरणीय साबित होगी। यदि ऐसा हुआ तो अमेरिका और ब्रिटेन जैसे पुराने और सशक्त लोकतंत्रों को भी भारत का अनुसरण करना पड़ सकता है।

भारत इस तथ्य पर गर्व कर सकता है कि, जितने मतदाता भारत में हैं, दुनिया के किसी भी देश में नहीं हैं और लगभग हर साल भारत में कोई न कोई ऐसा चुनाव अवश्य होता है, जिसमें करोड़ों लोग मत डालते हैं लेकिन अगर हम थोड़ा गहरे उतरें तो हमें बड़ी निराशा भी हो सकती है। क्या हमें यह तथ्य पता है कि, पिछले ७७ साल में हमारे यहाँ १ भी सरकार ऐसी नहीं बनी, जिसे कभी ५० प्रतिशत मत मिले हों। कुल मतों के ५० प्रतिशत नहीं, जितने मत पड़े, उनका भी ५० प्रतिशत नहीं। गणित की दृष्टि से देखें तो १४० करोड़ की जनसंख्या वाले देश में सिर्फ २०-२५ करोड़ लोगों के समर्थनवाली सरकार क्या वास्तव में लोकतांत्रिक सरकार है ? आज तक हम ऐसी सरकारों के अधीन ही रहे हैं, इसी कारण लोकतंत्र में विषमताएं एवं विसंगतियों का बाहुल्य रहा है, लोकतंत्र के नाम पर यह छलावा हमारे साथ हो रहा है। इसके जिम्मेदार जितने राजनीतिक दल हैं, उतने ही हम भी। 

   रोजी-रोटी के लिए अपने गाँव-शहर से दूर जाकर जीवन-यापन करने वाले सब लोगों के लिए यह संभव नहीं कि, वे मतदान करने अपने घर-गाँव लौट सकें। यदि सेना और अर्धसैनिक बलों के जवानों के साथ-साथ चुनाव ड्यूटी में शामिल लोगों के लिए मत देने की व्यवस्था हो सकती है तो अन्य के लिए क्यों नहीं ? इस बार ऐसी किसी व्यवस्था के निर्माण के लिए निर्वाचन आयोग के साथ सरकार का भी सक्रिय होना समय की मांग है। इसी से हम अधिकतम मतदान के लक्ष्य को हासिल कर सकेंगे।
अधिकतम मतदान का वास्तविक उद्देश्य है, जन-जन में लोकतंत्र के प्रति आस्था पैदा करना, हर व्यक्ति की जिम्मेदारी निश्चित करना।

इस तरह भारतीय संविधान में अनिवार्य मतदान के लिए कानूनी प्रावधान बनाए जाने की तीव्र अपेक्षा है। बेल्जियम, आस्ट्रेलिया, ग्रीस, बोलिनिया और इटली जैसे देशों की भांति हमारे कानून में भी मतदान न करने वालों के लिए मामूली जुर्माना निश्चित होना चाहिए। यदि मतदान अनिवार्य हो जाए तो चुनावी भ्रष्टाचार बहुत घट जाएगा। लोगों में जागरूकता बढ़ेगी, मत-बैंक की राजनीति थोड़ी पतली पड़ेगी। जिस दिन भारत के ९० प्रतिशत से अधिक नागरिक मत डालने लगेंगे, जागरूकता इतनी बढ़ जाएगी कि, राजनीति को सेवा की बजाय सुखों की सेज मानने वाले किसी तरह का दुस्साहस नहीं कर पाएंगे। राजनीति को सेवा या मिशन के रूप में लेने वाले ही जन-स्वीकार्य होंगे।