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अपने सर पे हम बाँध कर कफन चले

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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हम हैं ऐसे नौजवान कट ही जाए सर भले,
आज अपने सर पे हम बाँध कर कफन चले।
हम वतन की आबरू मिटने नहीं देंगे कभी,
उठी गलत नजर तो आँख फोड़ देंगे हम अभी।
जो गला विद्रोह की आवाज गर उठायेगा,
बोलने से पहले ही हम काट देंगें वो गले॥
आज अपने सर पे हम…

आयेगा दुश्मन कोई तो देखना मिट जायेगा,
एक इंच भूमि भी हथियाने नहीं पायेगा।
कोई नाग बन के जो घुसेगा आस्तीन में,
फन पकड़ के उसको कुचल देंगे पाँव के तले॥
आज अपने सर पे…

पाक हो या चीन हो या चीन का भी बाप हो,
ईराक या ईरान हो या अमरीका खुद आप हो।
हम सभी के बाप हैं,वो आजमा के देख लें,
धूल में मिला देंगें,ऐसे हमारे हौंसले॥
आज अपने सर पे…

हमने चन्द्रयान-टू को चाँद पर भेजा अभी,
हमारी इस उपलब्धि को देखते रहे सभी।
वक्त ऐसा आयेगा,चँदा पे घर बनायेंगे,
तिरंगा हम फहरायेंगे बला से दुनिया जले॥
आज अपने सर पे…

शेरों का वतन है,यहाँ गीदड़ नहीं रहते,
दुनिया वाले इसको सजदा यूँ नहीं करते।
गुरू है आदिकाल से,गुरू ही रहेगा,
आ जाओ,जिसको आना हो तिरंगे के तले॥
आज अपने सर पे हम बाँध कर कफन चले…

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।

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