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अब तो आजा सनम…

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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चाँद भी छुप गया,रात भी ढल गई,
अब तो आजा…मेरा दम निकलने को है।
वादियां जग उठीं,रास्ते चल पड़े,
मेरी रुह अपना चोला बदलने को है।
अब तो आजा सनम…

चाँद और चाँदनी इश्के मशगूल थे,
खूब शबनम बरसती,टपकती रही।
हसरते यार दीदार को रातभर,
मेरी नजरें तरसती,भटकती रहींं।
आजा आँचल में अपने छुपा ले मुझे,
अपने आँचल में आ के छुपा ले मुझे।
चाँद भी पीछे बादल के छुपने को है,
अब तो आजा सनम…

किसका सजदा करूँ,किससे शिकवा करूँ,
सजदे और शिकवे मेरी फितरत नहीं।
है मेरे पास में पाक उल्फत मेरी,
किसको रोऊं,मेरी जागी किस्मत नहीं।
हसरतें लुट गयीं,आरजू मिटीं,
हसरतें लुट गयीं,आरजू मिटीं…
देख हस्ती-ए-चहल आज मिटने को है।
अब तो आजा सनम…

मैं चकोरा नहीं,ना पतंगा हूँ मैं,
तुझको चाँद और दीए की तरह रुसवा करूँ।
एक लम्हा तो कटता नहीं तेरे बिन,
कैसे सदियों तलक तेरा रस्ता तकूँ।
मैं गुजर जाऊंगा,कूच कर जाऊंगा,
मैं गुजर जाऊंगा,कूच कर जाऊंगा…
तू न आई तो जाँ मेरी चलने को है।
अब तो आजा सनम…

अब तो आजा मेरा दम निकलने को है,
मेरी रूह अपना चोला बदलने को है।
चाँद भी पीछे बादल के छुपने को है,
देख हस्ती-ए-चहल आज मिटने को है।
तू न आई तो जाँ मेरी चलने को है।
अब तो आजा,अब तो आजा…
अब तो आजा सनम…॥

परिचय-हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।

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