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अमरूद का पेड़

डाॅ. मधुकर राव लारोकर ‘मधुर’ 
नागपुर(महाराष्ट्र)

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हमारे घर में पुराना अमरूद का पेड़ आँगन की बाउन्ड्री में स्थित है। कुछ दिन पूर्व हमारे चिकित्सक पुत्र के विवाह की तैयारी प्रारंभ हुई। घर के सामने मंडप लगाया जाना था। मंडप वाले ने कहा-“सर यह अमरूद का पेड़ काटना होगा। इसके तने के कारण मंडप,सही रूप से नहीं लग पाएगा।”
सुनते ही पेड़ से आवाज आई-“वाह रे इंसान,मेरे हरे-भरे स्वरूप के कारण तुम्हारे घर पर छांव है। मेरे मीठे फल बच्चों, बूढ़ों ने स्वाद लेकर खाए हैं,पड़ोसियों को खिलाए हैं। मेरे कारण तुम्हारी साँसें चल रही है,हमसे आक्सीजन ग्रहण करते हो, तुम्हारे घर की शोभा हूँ मैं तथा तुम मुझे काटकर पाप का भागीदार बनना चाहते हो। वह भी महज अपने पुत्र के २-३ दिनों के विवाह के लिए…।”
मैंने पेड़ से कहा-“भाई क्यों नाराज होते हो। हम तुम्हारा महत्व समझते हैं। हमने तुम्हारी सेवा और सुरक्षा करके ही, तुमको इतना बड़ा किया है। आखिर तुम हमारे पुत्र जैसे हो।कुछ सोचने का वक्त दो।”
तुरंत पेड़ ने कहा-“भूल गये वे लम्हें,जब सुबह तुम जल्दी उठकर मेरी टहनियों में बैठे तोता,मैना,चिड़ियों,परिंदों का चहचहाना और उनकी मीठी आवाज सुनकर गुनगुना उठते थे,अपनी व्यथा भूल जाते थे।”
मंडप वाले ने पेड़ की बातें सुनकर क्रोध में कहा-“क्या सर आप भी,इस मूर्ख पेड़ की बात सुनकर सोच में पड़ गये हैं। मैं पेड़ को काटकर अपना मंडप लगाना शुरू करता हूँ। इसी काम में मुझे बहुत समय लगेगा।”
मुझे लगा हम शहरी लोगों के पास एक भी पौधा लगाने का, समय तो होता नहीं। यहां तो एक हरा भरा फलदार वृक्ष काटने की बात है।
मैंने सोच-विचार कर मंडप वाले से कहा-“भाई ऐसा करो,पेड़ की जो ऊपरी टहनियां हैं,उसे इस तरह बांधों कि पेड़ का एक, छोटा-सा हिस्सा भी नष्ट ना हो और आप मंडप बांधना शुरू करो। आखिर अमरूद का पेड़ भी तो मेरे पुत्र जैसा ही तो है।”

परिचय-डाॅ. मधुकर राव लारोकर का साहित्यिक उपनाम-मधुर है। जन्म तारीख़ १२ जुलाई १९५४ एवं स्थान-दुर्ग (छत्तीसगढ़) है। आपका स्थायी व वर्तमान निवास नागपुर (महाराष्ट्र)है। हिन्दी,अंग्रेजी,मराठी सहित उर्दू भाषा का ज्ञान रखने वाले डाॅ. लारोकर का कार्यक्षेत्र बैंक(वरिष्ठ प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त)रहा है। सामाजिक गतिविधि में आप लेखक और पत्रकार संगठन दिल्ली की बेंगलोर इकाई में उपाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-पद्य है। प्रकाशन के तहत आपके खाते में ‘पसीने की महक’ (काव्य संग्रह -१९९८) सहित ‘भारत के कलमकार’ (साझा काव्य संग्रह) एवं ‘काव्य चेतना’ (साझा काव्य संग्रह) है। विविध पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी को स्थान मिला है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में मुंबई से लिटरेरी कर्नल(२०१९) है। ब्लॉग पर भी सक्रियता दिखाने वाले ‘मधुर’ की विशेष उपलब्धि-१९७५ में माउंट एवरेस्ट पर आरोहण(मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व) है। लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी की साहित्य सेवा है। पसंदीदा लेखक-मुंशी प्रेमचंद है। इनके लिए प्रेरणापुंज-विदर्भ हिन्दी साहित्य सम्मेलन(नागपुर)और साहित्य संगम, (बेंगलोर)है। एम.ए. (हिन्दी साहित्य), बी. एड.,आयुर्वेद रत्न और एल.एल.बी. शिक्षित डाॅ. मधुकर राव की विशेषज्ञता-हिन्दी निबंध की है। अखिल भारतीय स्तर पर अनेक पुरस्कार। देश और हिन्दी भाषा के प्रति विचार-
“हिन्दी है काश्मीर से कन्याकुमारी,
तक कामकाज की भाषा।
धड़कन है भारतीयों की हिन्दी,
कब बनेगी संविधान की राष्ट्रभाषा॥”

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