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आप भगवान नहीं, हम बना देंगे!

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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हमारा देश धर्मभीरु और कष्ट प्रधान देश है। यहाँ तैतीस करोड़ देवी-देवता हैं तो हजारों की संख्या में भगवान् होना कोई नई बात नहीं है। भगवान् ऋषभ देव जी के समय में ३६३ मत थे। हमारे देश में ‘गीता’ में भी कहा गया है कि जब-जब दुःख, अन्याय, अत्याचार बढ़ता है, तब मैं जन्म लेता हूँ। आज विश्व में सबसे अधिक कोई बीमारी है तो वह दुःख, कष्ट है। वैसे, कष्ट मनुष्य जन्म से ही लेकर आता है और फिर अपने जीवन काल में घटते और बढ़ते जाते हैं। कारण कि, जो बैंक में जमा रहता है, उसका ही आहरण किया जाता है।
संसार का नाम दुःख है और इस दुःख से मुक्ति और सुख की तलाश में मानव भटकता रहा है। मेरे मन के अनुकूल सामग्री नहीं मिली, वह दुःख है। सामग्री निश्चित है, और सबको नहीं मिल सकती तो न मिलने वाले दुखी और जिनको मिल गई, वो छूटने के दुःख से दुखी हैं।
वैसे धर्म व्यक्तिगत होता है और उस धारणा को बहुतायत में मानने वाले समाज या समुदाय या पंथ हो जाता है। धर्म पढ़ने-लिखने का नहीं है, वह मनन करने-गुनने का है, उसे आचरण में लाने के लिए है। बिना आचरण में लाए कुछ उद्धार होने वाला नहीं है। भाषण-प्रवचन एक मार्गदर्शक का कार्य करते हैं, उस मार्ग पर तो स्वयं चलना पड़ता है।
बहुत पुरानी बात तो नहीं मालूम, पर कई नए संत, महंत,भग-वान आए। अनेक भगवान् भगवा बनने के कारण अपराधी बने और जेल की हवा खा रहे हैं। कर्म सिद्धांत के अनुसार सब मनुष्य भगवान, संत-महंत नहीं बन सकते हैं। जिनका पुण्य होता है, यश होता है, और वर्तमान में जिनके पास चमत्कार होता है, वे भगवान् बन रहे हैं।कष्ट से मुक्ति के लिए नए भगवान् नए- नए अवतारों में जन्म लेते हैं और लेते रहेंगे, पर किसी के कष्ट कम नहीं होंगे। कारण कर्मों का दंड हर जीव को भोगना ही होता है।
हिंदुस्तानी अंधविश्वासी बहुत होता है और वह लकीर का फ़क़ीर होता है। धर्म की व्याख्या अनेक प्रकार से अनेक धर्म ग्रंथों में बताई है, पर मनुष्य खुद न मेहनत कर संत-महंतों से करवाता है। बड़े-बड़े मंदिरों में पैसा देकर पुजारियों से भगवान् द्वारा कष्ट दूर-सुख पाना चाहते हैं। क्या भगवान् आपके सेवक हैं और पुजारी आपके दलाल हैं ?आजकल तथाकथित धामों के महंत कष्टमुक्तिदाता बने हुए हैं, और वे स्वयं कष्टों से जूझ रहे हैं। उनकी तस्वीर सुन्दर हैं और एक्सरे गड़बड़ है! इन धामों के मठाधीशों का जब पर्दाफाश होगा, तब समझ में आता है। यह देशवासियों का कितना बड़ा पागलपन कि लाखों की संख्या में धर्मांधता के कारण भेड़िया धसान जैसे मरे जा रहे हैं। धर्म के नाम पर लुटाई और खाली माला पाने मर रहे और मर गए। जो काम एकांत में करना चाहिए, उसे सार्वजनिक कर रहे हैं। जो सार्वजनिक करना चाहिए, उसे एकांत में कर रहे है।यह धर्म का नशा अपनी विकृति पर है। यह मृगतृष्णा है और कुछ नहीं। इसीलिए कहा जाता है कि, आप भगवान नहीं हैं तो, हम भगवान बना देंगे। कारण कि, भीड़-तंत्र जिसके पास है, वह राजनीति का मोहरा है। बिना पढ़ा-लिखा चमत्कार द्वारा अपने को श्रेष्ठ मानकर पूजनीय बना दिया जाता है। विवेकहीन अंधी दौड़ में सब नकली शेरों की तलाश में दौड़-धूप कर थक रहे हैं।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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