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एक पैग़ाम-युवा पीढ़ी के नाम…`प्रेम विवाह`

सुरेन्द्र सिंह राजपूत हमसफ़र
देवास (मध्यप्रदेश)
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जब कोई बेटा या बेटी अच्छा काम करते हैं,तो उसके माता-पिता गुरुओं के साथ-साथ और भी बहुत से लोग होते हैं,जिनका सिर गर्व से ऊँचा हो जाता है,लेक़िन वही बेटा या बेटी जब कोई ग़लत काम कर डालते हैं तो उनके माता-पिता के साथ साथ उनसे जुड़े बहुत सारे लोगों का सिर शर्म से झुक जाता है। प्रेम करना ग़लत नहीं है, लेकिन वह प्रेम जिसमें माता-पिता,गुरू,रिश्तेदार सबका सम्मान बना रहे,और आपका भविष्य भी सुरक्षित रहे। प्रेम में तन के साथ मन के भावों को ज़्यादा महत्व दें। आजकल देखा गया है कि,बच्चे शारीरिक प्रेम के चक्कर में पढ़कर अपना सब कुछ गंवा बैठते हैं,साथ ही माता- पिता का वह मान-सम्मान जिसको हासिल करने में उनकी उम्र गुजर जाती है,पीढ़ियाँ गुजर जाती हैं। इसे जाने में पलभर भी नहीं लगता। अपनी २० दिन की या बीस सप्ताह की मोहब्बत में माता-पिता की बीस साल की ममता भूल जाते हैं। माता-पिता को अपनी बात मनवाने हेतु अनावश्यक दबाब डालना,आत्महत्या की धमकी देना कहाँ तक उचित है ? किसी महापुरुष ने कहा है कि-“एक माँ अपने बेटे को बीस साल में इतना बुद्धिमान नहीं बना पाती और एक दूसरी औरत उसे बीस मिनिट में बुद्धू बना देती है।”
युवा पीढ़ी से पूछना चाहूँगा कि आपने बीस दिनों में अपने प्रेमी में ऐसा क्या देख लिया कि,आप बचपन में दिया गया माता-पिता का अनमोल प्यार भूल जाते हो ? ज़िन्दगी के इस मोड़ पर संयम को बरतते हुए विवेक से निर्णय लेना चाहिए। ज़रा-सी असावधानी आपकी ज़िन्दगी को चौपट कर सकती है। फ़िर आप कहीं के नहीं रहते,घर के न घाट के। कहते हैं उस ख़ुशी से दूर रहो,जो कल ग़म बनकर काँटों की तरह दुःख दे। अपने युवा दोस्तों से आव्हान है कि वे जोश में होश न खोएं। पढ़ाई के साथ-साथ अपने अच्छे भविष्य को भी ध्यान में रखें,जिससे परिवार और समाज आपकी उपलब्धियों पर गर्व कर सके। अपने जीवन को अच्छा या बुरा बनाना आपके हाथों में है। बात सिर्फ़ ज़िन्दगी जीने की है,तो वह तो कीड़े-मकोड़े भी जी लेते हैं, पर वो ज़िन्दगी किस काम की,जिसके जीने का मक़सद पूरा न हो। जीवन में सबसे बड़ा फ़र्ज़ होता है,अपने माता-पिता,परिवार के प्रति, जिस समाज में हम पले-बड़े उस समाज के प्रति,जिस राष्ट्र में हमने जन्म लिया उस वतन के प्रति और जिस परमात्मा ने हमको इतना सुन्दर जीवन दिया उसके प्रति-बाक़ी सब चीज़ें बाद में। एक सैनिक को देखिए अपना सब कुछ त्याग कर अपने फ़र्ज़ के लिए डटा रहता है। इसलिए,अपनी ज़िन्दगी के लिए सही फ़ैसले कीजिए। २ मिनिट में ज़िन्दगी नहीं बदलती,पर २ मिनिट सोचकर लिया गया निर्णय आपकी ज़िन्दगी बदल सकता है-
काम ऐसे कीजिए बना रहे स्वभिमान,
परिवार और राष्ट्र का बड़े जिसमें सम्मान।

परिचय-सुरेन्द्र सिंह राजपूत का साहित्यिक उपनाम ‘हमसफ़र’ है। २६ सितम्बर १९६४ को सीहोर (मध्यप्रदेश) में आपका जन्म हुआ है। वर्तमान में मक्सी रोड देवास (मध्यप्रदेश) स्थित आवास नगर में स्थाई रूप से बसे हुए हैं। भाषा ज्ञान हिन्दी का रखते हैं। मध्यप्रदेश के वासी श्री राजपूत की शिक्षा-बी.कॉम. एवं तकनीकी शिक्षा(आई.टी.आई.) है।कार्यक्षेत्र-शासकीय नौकरी (उज्जैन) है। सामाजिक गतिविधि में देवास में कुछ संस्थाओं में पद का निर्वहन कर रहे हैं। आप राष्ट्र चिन्तन एवं देशहित में काव्य लेखन सहित महाविद्यालय में विद्यार्थियों को सद्कार्यों के लिए प्रेरित-उत्साहित करते हैं। लेखन विधा-व्यंग्य,गीत,लेख,मुक्तक तथा लघुकथा है। १० साझा संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है तो अनेक रचनाओं का प्रकाशन पत्र-पत्रिकाओं में भी जारी है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में अनेक साहित्य संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है। इसमें मुख्य-डॉ.कविता किरण सम्मान-२०१६, ‘आगमन’ सम्मान-२०१५,स्वतंत्र सम्मान-२०१७ और साहित्य सृजन सम्मान-२०१८( नेपाल)हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्य लेखन से प्राप्त अनेक सम्मान,आकाशवाणी इन्दौर पर रचना पाठ व न्यूज़ चैनल पर प्रसारित ‘कवि दरबार’ में प्रस्तुति है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज और राष्ट्र की प्रगति यानि ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद, मैथिलीशरण गुप्त,सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ एवं कवि गोपालदास ‘नीरज’ हैं। प्रेरणा पुंज-सर्वप्रथम माँ वीणा वादिनी की कृपा और डॉ.कविता किरण,शशिकान्त यादव सहित अनेक क़लमकार हैं। विशेषज्ञता-सरल,सहज राष्ट्र के लिए समर्पित और अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिये जुनूनी हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
“माँ और मातृभूमि स्वर्ग से बढ़कर होती है,हमें अपनी मातृभाषा हिन्दी और मातृभूमि भारत के लिए तन-मन-धन से सपर्पित रहना चाहिए।”

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