दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
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माना कि जीवन के रास्ते अनेक हैं,
लेकिन मंजिल तो सबकी एक है।
दो जिस्म मगर हम जान तो एक हैं,
अल्लाह-ईश्वर-खुदा-रब तो एक हैं।
सब कहते हैं कि वो हमेशा नेक हैं,
कुछ न कुछ कहने वाले तो अनेक हैं।
चाहकर भी कोई किसी को भूलता नहीं,
दर्द पाकर भी कोई दवा मांगता नहीं।
वो दर्द भी मुझे अब प्यारा लगता है,
जब प्यार से कोई अपना ही देता है।
हम तो जी लेंगे उसकी यादों के सहारे,
पर क्या हाल होगा उसका बिन हमारे।
माना कि हम प्यार के काबिल नहीं,
पर वो भी तो बाँहों से जाती नहीं।
हम तो सिर्फ उसके दर्शन के दीवाने हैं,
शमा पे जलने वाले हम तो परवाने हैं।
ये हुस्न, न तुम इतराओ इतना,
इश्क से न तुम घबराओ इतना।
इश्क नहीं तो हुस्न किस काम का,
हुस्न नहीं तो इश्क बिना काम का॥