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कब तक…यूँ ही जीना होगा!

डॉ.नीलम कौर
उदयपुर (राजस्थान)
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अंतरराष्ट्रीय शरणार्थी दिवस विशेष………..


रब्बा तेरी दुनिया में,
सब तेरी शरणायी हैं।
तेरी छत्रछाया में फिर क्यों,
हमने ही सजा पाई है।

सब ही तो यहाँ शरणार्थी हैं,
फिर हमको ही क्यों ?
ये नाम मिला और क्यों,
हम पर ये गाज गिराई।

ना हमारा कोई ठौर-ठिकाना,
ना जठराग्नि को दो वक़्त का खाना।
मारे मारे दर-दर फिरते,
कभी इस पाले,कभी उस पाले -पाले।

ये दुनिया इक मैदान,
हर राष्ट्र यहाँ के टीम-खिलाड़ी॥
हमको तो हर राष्ट्र समझे,
इक फुटबाल जो उनके हाथ आई।

हर राष्ट्र के पैरों की ठोकर से,
कभी इस पाले में ही तो
कभी उस पाले में ही लुढ़कते,
कहीं दो पल भी हम नहीं ठिठके।

हमको बना कर अपना बाल,
कैसे भूल गया तू हमारी जात।
क्या दो गज जमीं भी ना,
दे सकता तू हमारे हाथ।

तेरे बनाये दुनिया के सरताज,
हमको नहीं स्वीकारते हैं एक रात।
बस ‘मतों’ की खातिर कुछ पल,
सह लेते हैं,लेकर मत हमीं से धक्का दे देते हैं।

कब तक… !
कब तक रब्बा के हमको,
यूँ ही मर-मर कर जीना होगा।
तेरी शरण में रहकर भी,
जग-बंदों की नजरों में
शरणार्थी बनकर रहना होगा॥

परिचय – डॉ.नीलम कौर राजस्थान राज्य के उदयपुर में रहती हैं। ७ दिसम्बर १९५८ आपकी जन्म तारीख तथा जन्म स्थान उदयपुर (राजस्थान)ही है। आपका उपनाम ‘नील’ है। हिन्दी में आपने पी-एच.डी. करके अजमेर शिक्षा विभाग को कार्यक्षेत्र बना रखा है। आपका निवास स्थल अजमेर स्थित जौंस गंज है।  सामाजिक रुप से भा.वि.परिषद में सक्रिय और अध्यक्ष पद का दायित्व भार निभा रही हैं। अन्य सामाजिक संस्थाओं में भी जुड़ाव व सदस्यता है। आपकी विधा-अतुकांत कविता,अकविता,आशुकाव्य और उन्मुक्त आदि है। आपके अनुसार जब मन के भाव अक्षरों के मोती बन जाते हैं,तब शब्द-शब्द बना धड़कनों की डोर में पिरोना और भावनाओं के ज्वार को शब्दों में प्रवाह करना ही लिखने क उद्देश्य है।

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