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कभी न करें जन्मदाता की उपेक्षा

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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माँ अनमोल रिश्ता (मातृ दिवस विशेष) …

मेरी माँ श्रीमती समुंद्री बाई जैन के प्रति विनम्र श्रद्धांजलि। मुझे इस बात का बहुत दुःख है कि अपने माता-पिता की मृत्यु के समय नौकरी के कारण समय पर उपस्थित न होकर कोई सेवा नहीं कर पाया था। इस हेतु मृत आत्माओं से उत्तम क्षमा भाव रखते हुए सभी से निवेदन है कि, जन्मदाताओं की उपेक्षा कभी न करें। यह बहुत बड़ा अपराध बोध होता है जिसकी कसक जिंदगीभर रहती है। माँ-बाप की सेवा ईश्वर सेवा से भी बढ़कर होती है।
अब बात ‘मातृ दिवस’ की तो इसे यूरोप में ‘मदरिंग संडे’ भी कहा जाता है। इस दिन को माँ का दिन कहा जाता है। ये दिन मई के दूसरे रविवार को मनाया जाता है। वैसे तो साल का हर दिन माँ के नाम होता है लेकिन खासतौर पर इस दिन लोग अपनी माँ को विशेष अनुभव-अहसास कराने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। आजकल शहर से लेकर गाँवों तक लगभग सभी जगह लोग अपने-अपने अंदाज में इसे मनाते हैं।
जिंदगी के कई रिश्तों के बीच माँ के साथ एक बच्चे का सबसे खास रिश्ता होता है। बच्चे को जन्म देने से लेकर हर सुख और दु:ख में माँ ही है, जो हमेशा बच्चे के साथ खड़ी मिलती है। किसी के लिए भी जीवन में माँ की अहमियत को शब्दों में बयान कर पाना काफी मुश्किल होता है, बावजूद इसके साल का १ दिन मातृत्व के महत्व को दिया जाता है, जिसे हम मातृ दिवस के रूप में मनाते हैं। हालांकि, किसी एक दिन को माँ के नाम करना काफी नहीं होता है, मगर सामाजिक संचार और अंतरजाल के इस दौर में इसे मनाने का प्रचलन काफी बढ़ गया है।
इसकी शुरूआत एना जॉर्विस नाम की एक अमेरिकन महिला ने की थी। दरअसल, एना का अपनी माँ की तरफ बेहद खास लगाव था। अपनी माँ की मृत्यु के बाद उनको सम्मान देने के लिए एना ने इसकी शुरूआत की। इसीलिए ईसाई समुदाय के कई लोग इस दिन को ‘वर्जिन मेरी’ के नाम से भी पुकारते हैं।
एना जॉर्विस ने इसकी नींव जरूर रखी, लेकिन औपचारिक रूप से शुरूआत ९ मई १९१४ को अमेरिका के राष्ट्रपति वुड्रो विल्सन ने की थी। इस दौरान अमेरिकी संसद में कानून पारित कर हर साल मई महीने के दूसरे रविवार को इसे मनाने का एलान किया गया। तब से अमेरिका, यूरोप और भारत सहित कई जगहों पर यह मनाया जाने लगा, जबकि कई देशों में मार्च महीने में भी मनाया जाता है। इस पंक्ति में इसका महत्व है कि,-
‘मौत के लिए बहुत रास्ते हैं पर,
जन्म लेने के लिए केवल माँ है…।’

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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