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कविता और मैं

सपना सी.पी. साहू ‘स्वप्निल’
इंदौर (मध्यप्रदेश )
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‘विश्व कविता दिवस’ (२१ मार्च) विशेष…

जब मैं अकेली होती हूँ,
तुमसे ही बातें करती हूँ
बस सोचती हूँ तुम्हें ही,
और पास अपने पाती हूँ।

तुम कल्पना तो मैं उड़ान हूँ,
तुम व्याकरण, मैं शब्द हूँ
तुम चलायमान, मैं स्थान हूँ,
तुम भाव में, मैं अभिव्यक्त हूँ।

तुम संगीत तो मैं तान हूँ,
तुम राजनीति, मैं नीति हूँ
तुम हर विषय, मैं पाठक हूँ,
तुम शिक्षक, मैं विद्यार्थी हूँ।

तुम जब प्रीति तो मैं प्रेम हूँ,
तुम व्यक्तित्व, मैं व्यक्ति हूँ
तुम अपनत्व, मैं ममता हूँ,
तुम एकाकी, मैं व्यवहार हूँ।

तुम अन्तर्मन तो मैं मन हूँ,
तुम आक्रोश, मैं विचलित हूँ
तुम मित्र हो, मैं सारथी हूँ,
तुम रंगरेज में, मैं रंग हूँ।

तुम ईश्वर तो मैं भक्ति हूँ,
तुम ब्रह्माण्ड, मैं नभ हूँ
तुम प्रकृति, मैं तत्व हूँ,
तुम पुष्प, मैं सुगंध हूँ।

तुम पूजा तो मैं आरती हूँ,
तुम सत्य, मैं प्रमाणित हूँ
तुम धर्म, मैं धर्मात्मा हूँ,
तुम शिव, मैं शिवालय हूँ।

तुम भाषाएँ तो मैं बोली हूँ,
मैं तो तुम्हारी हमजोली हूँ
तुमसे ही मेरी पूर्णता है,
तू ही तो मेरी कविता है।

तुम मन, कर्म, वचन, वाणी,
मेरे तुम हर पहर में कल्याणी।
तुम कवि की कविता कहलाती,
जहां न पहुँचे रवि, तुम मुझे ले जाती॥