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काटो जड़ आतंक की

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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आतंकवाद रोग तम, फैला है संसार।
उठा पार्थ ब्रह्मास्त्र फिर, करो पाक संहार॥

सूखा कभी न घाव तज,जख्म कठिन नासूर।
काटो जड़ आतंक का, वरना भष्मासुर॥

आतंकी की त्रासदी, भोग रहा संसार।
पाक दहशती गेह है, कैसे शान्ति बहार॥

रक्षण चहुँ सीमा वतन, रखो स्वयं विश्वास।
हो विनाश आतंक का, रखो शौर्य आभास॥

आएँगी चोटें ज़ख़्म, टूटोगे सौ बार।
ख़त्म करो आतंक को, बने रहो खुद्दार॥

शान्ति प्रेम सद्भावना, मर्यादित अभिव्यक्ति।
दिखा रहा है नापाक खल, दहशतगर्दी शक्ति॥

दारुण भारत जख़्म नित, आतंकी अपमान।
समय नहीं यह क्षमा का, साधो तीर कमान॥

आतंकी नासूर बन, पग-पग देता पीर।
प्रतीकार जनभावना, समझो सैनिक धीर॥

ढाए अपनों पर सितम, तोड़े सब अरमान।
लूटे जीवन अस्मिता, आतंकी शैतान॥

प्रमुदित मन परवेदना, पाक तिरोहित मान।
क्षत-विक्षत आतंक से, हुआ पाक शैतान॥

लोभ छली मिथ्या कपट, नित गढ़ता छल नीति।
करता भीतरघात वह, दिखा रहा बस प्रीति॥

तहस नहस आतंक को, करो पाक का नाश।
सहा बहुत त्रासद वतन, जगा शान्ति जन आश॥

रक्षा हो माँ भारती, ध्वजा तिरंगा शान।
आतंकी अवसान से, बचे राष्ट्र सम्मान॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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